ज्ञानी ना बन जाऊं मैं, टूट टूट ना जाऊं मैं ।
साथ सभी का मिल जाए तो, परमानंद ही पाऊं मैं ।
खोजी मन हो, खोजी बुद्धि । जीवन की मैं, कर लूं शुद्धि ।
नई सोच के साथ साथ अब, सबको अब अपनाऊ मैं ।
साथ सभी का मिल जाए तो, परमानंद ही पाऊं मैं ।
टूट टूट कर माला के, मोती क्यों यूँ बिखर रहे ।
ज्ञानी जबसे शहर हुआ जो, लोग हमारे बिखर रहे ।
मिशन ग्रीन की माला बनकर, मोती फूल बनाऊं मैं ।
साथ सभी का मिल जाए तो, परमानंद ही पाऊं मैं ।
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