कञ्चन म्रग की मारीचिका
स्वर्ण देह वैभव आपूरित
हुई भ्रमित वनचारिणी भूमिजा
संवरण च्युत लोभ ऊपजा
विस्फारित नेत्र आभा से पूरित
अंतः चक्षु पट परा आवरण
निमित्त बन गया वही अपहरण
छाला मृग कछु हाथ न आई
स्वर्णमयी वैदेही गवाई
शूल अग्र मृग देह धूसरित
मायापति सँग खेल अचंभित
हे राम क्रन्द उच्चरित सुख सों
क्रन्दन वन्दन उद्भासित मुख सों
भेदित हृदय रक्तसिक्त देह
दोउ हस्त जोर अनुनय विनय
जा पार लगा वैतरणी क्षण में
मायापति स्वयम अरण्य में
Facebook Comments
अति सुंदर
Rajesh ji … If u like then feel free to share.