आज हृदय क्यूं विदीर्ण हुआ
कुछ खचक सा महसूस हुआ
जाया लाल किसी माँ का वो
रक्त सिक्त देह थी जो
निर्लज्ज सभ्यता ताका करे
निर्मोही बन कर झांका करे
दो हाथ बढ़ाएं आतुर हों जो
ऐसे जीव समर्थ जो हों
लिपट रहा तन उस रूह को
जाने को आतुर क्षण में जो
कुछ हाथ मिले कुछ साथ मिले
जीवित हो मृत को श्वास मिले
चुटकी भर मनुष्यता शेष अभी
कंपित मत हो कलयुग में सखी
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