रहता हूँ मैं , अपनों में बेगाना बनकर
रोता हूँ मैं, सपनो में रोजाना जमकर
जलती इस धूप में, छाँव होती तो क्या होता
नकली इस भेस में, जीवन की इस रेस में
इस बेगाने देश में, माँ होती तो क्या होता
प्यासा हूँ मैं, नदियों के इस देश में
डूब रहा हूँ आज, मन के इस द्वेष में
यहां मीठे पानी की, बां होती तो क्या होता
नकली इस भेस में, जीवन की इस रेस में
इस बेगाने देश में, माँ होती तो क्या होता
खुली इस पवन में, मन ये घुटता है
झूठी इस चाह मैं, दिन ये लूटता है
गाँव की उस झील की, नाव होती तो क्या होता
नकली इस भेस में, जीवन की इस रेस में
इस बेगाने देश में, माँ होती तो क्या होता
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