पंख बो गया जाते जाते
पतवारों सँग बहते बहते
पवन लहर संग खेल रहा मैं
हरियाली कुछ गुदगुदा गई
रिमझिम बूंदें कुछ सुना गईं
हृदय राग उत्सव खिला गई
दादा के संग खेल खेल में
जो बीज बोए थे बचपन में
वट-वृक्ष बने बाहें झुला रहे
उन्नत उद्दात खिलखिला रहे
रह रह स्मृति में कम्प मचा रहे
दूर्वा-दल भी हंसती थी यूं
कुछ कम नहीं समझती थी वो
गिलहरी ने भी योग दिया
बालुका कणों से सेतु चिना
पुरुषार्थ करो रंच मात्र भी
उत्तराधिकारी करें याद भी
अंजुरी भर भर बीज चुनें हम
हरियाली की राह चुनें हम
हो भावी पीढ़ी का पथ प्रशस्त
वन-उपवन की बाढ़ लगाओ
मधुरस सुरभित पवन तुम पाओ
Facebook Comments