चला गया वो दौर, जब दूध में पानी मिलाया जाता था
अब तो जहर का मौसम है, बिना इसके कुछ जचता नहीं
जहर छोड़ते डिब्बों में, लोग अब घूम रहे हैं
हालत यूँ सुधर रही है, क्या होगा ये खबर नहीं
जमीन में जहर है, हवा में भी कम नहीं
दिलों में गर हो गया, इसका हमे गम नहीं
फर्क पड़ता नहीं अब हमको, हरा भरा वो शज़र नहीं
हालत यूँ सुधर रही है, क्या होगा ये खबर नहीं
कट रही आज वो माता, जो दूध का सागर थी
पाल रही थी सबको, सुख की वो गागर थी
चबा कर उसको खा रहे जो, मिलती उनको कब्र नहीं
हालत यूँ सुधर रही है, क्या होगा ये खबर नहीं
बयान कर रहा वर्मा तू, कहानी अब उस दौर की
दिल्ली की उस जनता की, जनता के उस शोर की
चीख रही है कलम ये मेरी, उसको भी अब सब्र नहीं
हालत यूँ सुधर रही है, क्या होगा ये खबर नहीं
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