जीवन अपना थम गया है, पीपल की इस छावं में
जीवन शक्ति खत्म हो रही, आगे बढ़ते पावँ में
जोड़ रहा हूँ मन में अपने, टूटी हुई मीनारों को
बैठ के अब में ताक रहा हूँ, इतिहास की दीवारों को
पलक झपकती आंखों से, ना तुझको मैँ पहचान रहा हूँ
भीतर अपने डूब रहा हूँ, ना तुझको अब मैं जान रहा हूँ
मुँह मोड़कर अपनों से, हूँ देख रहा हज़ारों को
बैठ के अब में ताक रहा हूँ, इतिहास की दीवारों को
मनोभाव सब खत्म हो रहा, हमदर्दी मुझमे खत्म हो रही
बैठे बैठे आज अचानक, बेदर्दी मुझमे ख़त्म हो रही
कोस रहा हूँ बैठे बैठे , टिम टीमाते सितारों को
बैठ के अब में ताक रहा हूँ, इतिहास की दीवारों को