ऑटो रिक्शा भाग रहा है

autoमिशन ग्रीन की कविता सुनकर, देखो ग्राहक जाग रहा है
बढ़ती इस महंगाई में, थोड़ी राहत मांग रहा है
घर को हम तो लेट हो रहे, महंगे उसके रेट हो रहे
दिल्ली की इन् सड़कों पर जो, ऑटो रिक्शा भाग रहा है

दिल्ली की हम सैर करें अब, छोले चख लें नागपाल के
ऑडियन का पान चबा कर, राउंड लगा लें सिटी वाक के
दरिया गंज का चिकन चंगेजी, ढाबे वाला टांग रहा है
घर को हम तो लेट हो रहे, महंगे उसके रेट हो रहे
दिल्ली की इन् सड़कों पर जो, ऑटो रिक्शा भाग रहा है

इंडिया गेट की सैर कर रहे, चूस रहे हैं हम तो चुस्की
बिल्ले जी की लस्सी पीकर, पड़ी रह गयी घर में व्हिस्की
शहर को अपने साफ़ कर रहा, देखो इंडिया जाग रहा है
घर को हम तो लेट हो रहे, महंगे उसके रेट हो रहे
दिल्ली की इन् सड़कों पर जो, ऑटो रिक्शा भाग रहा है

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