मुघ्को आज बुलाया है

मृत्युलोक की रात्री में , मन का ये संघर्ष है कैसा – पल पल मेरा कठिन हो रहा , जीवन का ये वर्ष है कैसा
मेरा हाथ पकड़ के तुमने, रस्ता मुघे दिखाया है – ग्रीन टेक की हरी सतह ने, मुघ्को आज बुलाया है

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एक तरफ कुआँ है दीखता, एक तरफ दिखती है खाई – मन के भीतर सत्य देखकर , खुद से हमने नजर मिलाई
बड़े दिनों के बाद आज फिर , आंसू निकल के आया है – ग्रीन टेक की हरी सतह ने, मुघ्को आज बुलाया है

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परिवेश हुआ है मन का ऐसा, हर पल मैं तो टूट रहा हूँ – बाग़ के खिलते फूलों से, आज अचानक रूठ रहा हूँ
बिछड़ रहे इन् प्राणों को , खुद से आज मिलाया है – ग्रीन टेक की हरी सतह ने, मुघ्को आज बुलाया है

– पुनीत वर्मा की कलम से

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