इस सुहानी सांझ में, मुघ्को तुम आवाज ना देना

 

मेरे इस यकीन को, फिर कोई लिबाज़ ना देना -दिल से मेरे निकल रहे, सुर को तुम कोई साज़ ना देना
यूँ ही बैठे रहने दो, यूँ ही रूठे रहने दो – इस सुहानी सांझ में, मुघ्को तुम आवाज ना देना

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नारंगी ये शाम हुई है, शहर की सर्ड्कें जाम हुई हैं – झील किनारे मैं हूँ बैठा, दुनिया ये बदनाम हुई है
अपनी प्यार मोह्हबत का, जाहिर कर कोई राज ना देना
यूँ ही बैठे रहने दो, यूँ ही रूठे रहने दो – इस सुहानी सांझ में, मुघ्को तुम आवाज ना देना

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चिडिओं का घर वापस जाना, मुघ्को अच्छा लगता है – सूरज का यूँ छिपते जाना , मुघ्को सच्चा लगता है
अपने हँसते होठों को, होने तुम नाराज न देना

यूँ ही बैठे रहने दो, यूँ ही रूठे रहने दो – इस सुहानी सांझ में, मुघ्को तुम आवाज ना देना

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