हरी अंजुरी

hari anjuri

पंख बो गया जाते जाते
पतवारों सँग बहते बहते
पवन लहर संग खेल रहा मैं
हरियाली कुछ गुदगुदा गई
रिमझिम बूंदें कुछ सुना गईं
हृदय राग उत्सव खिला गई
दादा के संग खेल खेल में
जो बीज बोए थे बचपन में
वट-वृक्ष बने बाहें झुला रहे
उन्नत उद्दात खिलखिला रहे
रह रह स्मृति में कम्प मचा रहे
दूर्वा-दल भी हंसती थी यूं
कुछ कम नहीं समझती थी वो
गिलहरी ने भी योग दिया
बालुका कणों से सेतु चिना
पुरुषार्थ करो रंच मात्र भी
उत्तराधिकारी करें याद भी
अंजुरी भर भर बीज चुनें हम
हरियाली की राह चुनें हम
हो भावी पीढ़ी का पथ प्रशस्त
वन-उपवन की बाढ़ लगाओ
मधुरस सुरभित पवन तुम पाओ

Loading

What are you looking for ?

    ×
    Connect with Us

      ×
      Subscribe

        ×