वैदिक भारत कि यात्रा – संस्कृति विहार

अक्षरधाम कि वो दस मिनट कि नौका यात्रा भुलाए नहीं भूल पा रही है. ऐसा क्या था उस यात्रा में. ये कौन सी यात्रा थी जिसने मुघे रात भर सोने नहीं दिया। आज मेरी समझ में आया कि भारत देश को सोने कि चिड़िया क्यों कहा जाता था।

वो कौन सी शक्ति सी जिसने मुघे अक्षरधाम जाने कि प्रेरणा दी? वो कौन सी चुबकीय ताकत थी जो मुघे खींच कर वहाँ ले गयी। पहले भी एक बार अक्षरधाम देख चुका हूँ लेकिन इस बार जो देखा वैसा अभी तक कहीं नहीं देखा था केवल किताबों में ही पड़ा था। सच में इस बार मेरी आँखें खुल गयी।

अक्षरधाम पहुंचे और फिर एक सौ सत्तर रूपए का टिकट लेकर अंदर गए. वहाँ एक ऑडिटोरियम में बिठा दिया गया जिसमे दिखाया गया इस जीवन में हम एक शिल्पकार के सामान हैं और अपना जीवन हम खुद्द ही सुन्दर बना सकते हैं और उसको एक दिव्य रूप प्रदान कर सकते हैं.

इसके बाद स्वामी नारायण भगवान् कि नीलकंठ यात्रा दिखाई गयी. दिखाया गया कि कैसे स्वामी नारायण भगवान् ने बचपन में घर का त्याग कर ज्ञान कि राह पकड़ ली थी। कैसे एक छोटे से बच्चे ने भय का त्याग कर दिया और विश्व को ही अपना घर स्वीकार कर लीया। कैसे उसने ज्ञान पर विजय प्राप्त कर ली और समस्त विश्व को अज्ञान के अन्धकार से बाहर निकाला।

स्वामी नारायण भगवान् कि दिव्य जीवन यात्रा के दर्शन करने के बाद हमे एक ऑडिटोरियम में ले जाया गया जहां पर कई अंग्रेजो ने भारत दर्शन पर अपना दृष्टिकोण दे रखा था। उनका कहना था इस धरती पर रहने के वावजूद भारतीय लोग उससे बोंडेड नहीं होते। वो इतने ग्यानी हैं कि वो आत्मा परमात्मा और शरीर का अंतर भली भाँती समझते हैं.

हमने सीखा कि किस्स तरह शराब और मांस छोड़कर, और अहिंसा कि राह पर चलकर हम धर्म कि राह पर चल सकते हैं.

इसके बाद हमे एक बड़ी और अद्द्भुत सी नौका में बिठाया गया और नौका एक यात्रा पर निकल पड़ी. एक ऎसी यात्रा जो हमे २००० साल पहले के भारत में ले कर जा रही थी. हमने देखा कि वैदिक समय के हमारे पूर्वज कितने एडवांस थे. कैसे वैदिक पीरियड को तकनिकी रूप से एडवांस बनाने में वैदिक ज्ञान का योगदान रहा था. कैसे तक्षिला और नालंदा जैसे विश्व विद्यालयों में विश्व भर से विद्याथी पड़ने आया करते थे. कैसे हमारे ऋषि मुनि गणित में , वैमानिक विज्ञान में , रसायन विज्ञान में ,
आयुर्विज्ञान में , वस्त्र उद्योग में, आयात निर्यात में , नृत्य में और कला कौशल में पूरी दुनिआ से आगे थे. हमे वैदिक काल से लेकर १८ वीं शताब्दी तक कि यात्रा करवाई गयी। जिसमे हमने विक्रमादित्य, भगवान् बुद्ध, भगवान् महावीर, महर्षि पाणिनि, मह्रिषी चरक, मह्रिषी आर्य भट्ट , गुरु नानक देव और भगवान् स्वामी नारायण के दर्शन किये।

इसके अलावा हमे पता चलता कि दिव्य काव्यों रामायण और महाभारत कि रचना भी इसी काल में हुई. अजंता एल्लोरा कि कला कृतियाँ भी इसी काल में रची गयी.

सचमुच हमे भारत के दिव्य दर्शन हुए.

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