गिरीश शर्मा कि कलम से

बच्चों को मिले ममता , बूढ़ों को हासिल हो प्यार
यही सोच कर एक दिन खुदा ने , इन्सान को किया तैयार।
माता को दिल मिला कोमल , और पिता बने बलवान
सद्बुद्धि ,सदमार्ग प्रशस्थ हो , यह बोल गये भगवान।
प्रेम भाव हो जनमानस में , कभी नए ना उपजै बैर
कभी कमी न हो अन्न वस्त्र की , तो धनरचना कर गये कुबेर।

पर अब न ममता माँ के आँचल , न पिता हृदय में प्यार
धन से ही है जीवनसाथी , धन से ही है रिश्तेदार।
धन की खातिर जीता और धन की खातिर मरा इन्सान
धन आते ही सोच रहा , मैंने ही रच दिया भगवान।

मैंने मन्दिर बना दिया है , मैंने मुकुट दिया है दान
सोने की तौली है मूरत , तो अब मेरा ही है भगवान
जिस नीयत से आया था , वो पीछे छोड़ गया इन्सान
धन आते ही सोच रहा , मैंने ही रच दिया भगवान।

गिरीश चन्द्र शर्मा ”प्रवासी ”

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