The Sea of Knowledge

1950 में ऐसा क्या हुआ जिसने इंसान की जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया. कई ज्ञान की नदियाँ ने, जो कई ज्ञान कुंडों से निकल रही थी, एक विशाल समंदर का रूप धारण कर लिया जिसको आज हम इन्टरनेट कहते हैं. अडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट्स पे काम करने वाली agency ने हमे वो पहली नदी दी जिसने डिफेन्स और Educational Universities से निकलने वाली नादिओं को अपने साथ मिला लिया और इस विशाल समंदर की शरुआत की. जब मैने इस समंदर के अन्दर झाँक कर देखा तो मैने एक दिव्य शक्ति का एहसास किया जिसने इन् सब कुंडों से निकलने वाले ज्ञान के बहाव को नियंत्रित कर रखा था और उस दिव्य शक्ति का नाम बेकबोन था जो काफी सारे routers को मिला के बना था. router एक गाँव के डाकिये की तरह होता है जिसको यह याद है की कौन सा घर कहाँ पर है और उसको “हब” की तरह एक पत्र को देने के लिए हर घर में जाकर पूछने की जरूरत नहीं होती. यह Router का समूह समुद्री मणिओं से बनी माला की तरह प्रतीत होता है और जो इस माला की दिव्य शक्ति को जानकर इस दिव्य शक्ति को प्रणाम करता है उसको बिना किसी बाधा के विश्व ज्ञान की प्राप्ति होती है. टेलनेट, FTP , आर्ची और gopher उन् गुरुओं की तरह थे जिन्होंने हमे इस समंदर से ज्ञान को निकालने और बांटने का तरीका बताया और गूगल जैसे शिष्ययों को जन्म दिया. और फिर जब ज्ञान के दुसरे कुंडों से जुड़ने की बात आई तो एक दूसरे की भाषा को समझने में दिक्कत आने लगी. इस दिक्कत से निबटने के लिए एक गुरुकुल बनाया गया जहां इस ज्ञान को बांटने के लिए और दूसरे कुंडों से communicate करने के लिए एक भाषा मानक website (compatibility standards फॉर language ,प्रोटोकॉल और algorithms ) बनाई गयी जिसको हम RFC (रेकुएस्ट फॉर कमेन्टस ) कहते हैं जो की सभी कुंडों के groups के और गुरुकुल ( IAB IETF और IESG ) के लोगों के विचारों को जानकार बनाई जाती है.

Loading

What are you looking for ?

    ×
    Connect with Us

      ×
      Subscribe

        ×