झटक दी गीली चूनर
अल्हडपन से
कुछ बूंदें
हज़ार टुकड़ों में
बिखर गईं
ठंडी फुहारों सी
चेहरे को छू कर
कुछ यादें बन कर
ज़ेहन को पार कर
हौले से
उतरती गईं
गहराइयों में
दिल की
चूनर तो सूख गई
सूखनी ही थी
पर
उठी जो लहर उसकी सरसराहट
छप गई
उम्रों के लिए
लहरों में खिले रंग
सराबोर रखते हैं
अब भी
रंगों लहरों गीलेपन की थरथराहट से
कम्पित है तरंगित है
अंग प्रत्यंग
झंकृत मधुर सुवासित
वो चूनर की
मुस्कुराहट