हां मैं कूड़ा उठाता हूँ

तीन चक्र पे हुआ सवार
काष्ठ तन का मैं अवतार
सुबह सवेरे जुट जाता हूं
हां मैं कूड़ा उठाता हूं

मलीनता से सराबोर
जन का त्यज्य अपनाता हूं
दुर्गंध से मैं नहाता हूं
हां मैं कूड़ा उठाता हूं

मुझ उपेक्षित को नहीं सराहता
राहगीर मुंह फेर निकलता
पात्र बना निष्ठुरता का
हृदय में कसमसाता हूँ
हां मैं कूड़ा उठाता हूं

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