मैं तेरे नज़दीक हूँ, पर तू मुघसे दूर है – मेरी lines पसंद नहीं, तो इसमें मेरा क्या कसूर है
मैं लिखता हूँ, फूलों पर, कलिओं पर – इस शहर पर, और दिल्ली की गलिओं पर
ये कोई नशा नहीं, लिखने का सरूर है – मैं तेरे नज़दीक हूँ, पर तू मुघसे दूर है
मेरी lines पसंद नहीं, तो इसमें मेरा क्या कसूर है
दिल्ली का वो बचपन, दिल्ली की वो जवानी – क्या पल थे वो, और मेरी दिल्ली की कहानी
जिंदगी बड़ी हसीन है, वक़्त बड़ा क्रूर है – मैं तेरे नज़दीक हूँ, पर तू मुघसे दूर है
मेरी lines पसंद नहीं, तो इसमें मेरा क्या कसूर है
खोजता हूँ तुझको, cp में, जनपथ में – पर मिलता नहीं तू मुझको, इस अग्निपथ में
ये जादू है तेरी आँखों का, तेरे चहरे का सरूर है – मैं तेरे नज़दीक हूँ, पर तू मुघसे दूर है
मेरी lines पसंद नहीं, तो इसमें मेरा क्या कसूर है
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