छज्जे से तनिक झांक कर देखें
अलस सुब्ह का मौसम
कुछ पत्ते
बेलौस से उड़ते जाते
बिछड़ गए लगता
अपने पेड़ से
किसी गौरैया से मुलाक़ात हो गई
हवा की ताज़गी
उड़ते उड़ते
कानों में फुसफुसाई
कब तक भला यूं ऊँघते रहेंगे
कम्बल की ऊनी महक
सूंघते रहेंगे
माना की आज इत्तेवार है
सूरज को भी पता हो गया ये
तभी न कोहरे की चादर में सिमट कर
अपनी ही गर्मी से लिपट कर
मना रहा है छुट्टी वो
मगर मैं क्या करूँ
झांका किया छज्जे से बार बार
अनेक बार
लगातार
यार कोई तो आ जाओ
इस इत्तवार को
इत्तवार बना जाओ
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