Itwaar Ki Alas Bhari Subah

छज्जे से तनिक झांक कर देखें
अलस सुब्ह का मौसम
कुछ पत्ते
बेलौस से उड़ते जाते
बिछड़ गए लगता
अपने पेड़ से

किसी गौरैया से मुलाक़ात हो गई
हवा की ताज़गी
उड़ते उड़ते
कानों में फुसफुसाई

कब तक भला यूं ऊँघते रहेंगे
कम्बल की ऊनी महक
सूंघते रहेंगे

माना की आज इत्तेवार है
सूरज को भी पता हो गया ये
तभी न कोहरे की चादर में सिमट कर
अपनी ही गर्मी से लिपट कर
मना रहा है छुट्टी वो

मगर मैं क्या करूँ
झांका किया छज्जे से बार बार
अनेक बार
लगातार

यार कोई तो आ जाओ
इस इत्तवार को
इत्तवार बना जाओ

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Bhupesh Khatri Ji is hindi and urdu poet who belongs to Allahabad. He works as Deputy Director (software) at IGNOU, New Delhi.

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Bhupesh Khatri

Bhupesh Khatri Ji is hindi and urdu poet who belongs to Allahabad. He works as Deputy Director (software) at IGNOU, New Delhi.

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