जीवन की यात्रा में, इस शहर ने बुलाया है
दिल्ली के इस बालक को, खिलाया है पिलाया है
दरख्तों की ओट ने, लवासा की बोट ने
मोहित कर डाला मुझको, मराठाओं के फोर्ट ने
धीरज से चलते चलते, सीमाओं को बदलते बदलते
आज यहां पहुंचा हूं, भारत में टहलते टहलते
अमित इस संसार में, स्वप्नाली पूर्ण भंडार में
खोज रहा हूँ रत्नों को, पुणे के दरबार में
शशि तले बैठा हूँ आज, गिन रहा इन तारों को
नमन कर रहा इस निकिता को, जन्मा जिसने हज़ारों को
विजय पताका लहराने वाले, मराठा ध्वज फहराने वाले
उन वीरों से प्रेरित हो रहा, जो थे दुश्मन को हिलाने वाले
झुकता हूँ हे श्रीनाथ, पूजा मैं करता हूँ
तेरे इस शहर को, नमन मैं करता हूँ
तरण की अप्सरा से, जैसे
मुलाकात सी हो गयी
पुणे की इस धरती से, गहरी बात सी हो गयी
विचारों से अविज्ञान हो रहा, महाराष्ट्र में हूँ खो रहा
कविता के जरिये सलाम करता हू ,सभी को प्रणाम करता हूँ