घर से ऑफिस के लिए निकलता हूँ तो कई घंटे ट्रैफिक में में ही बीत जाते हैं। दूसरों को कोसता हुआ मैं ऑफिस की तरफ बढ़ता हूँ लेकिन कभी यह नहीं सोचता हूँ की इस बढ़ते ट्रैफिक के लिए मैं ही जिम्मेदार हूँ। एक बेबस नागरिक की तरह धीरे धीरे कार का क्लच दबाता रहता हूँ और शहर को और प्रदूषित कर डालता हूँ। क्या ये रुटीन ऐसे ही चलता रहेगा या मैं इसे बदलूंगा ? क्या मैं जिस जमीन पर रहता हूँ और जिस हवा में सांस लेता हूँ, उसको ऐसे ही काला करता रहूँगा ? क्या मैं इतना मजबूर हो गया हूँ की अपने आराम की खातिर शहर का विनाश कर दूंगा ? क्या अपने बच्चों के लिए मैं काली धरती छोड़ के जाऊँगा ?

क्या हम यही काला जीवन जीएंगे ?
Facebook Comments