Wo Kahani Main Banaaun

ओस से भरे जाड़ों में, आखिर क्यों मौन हूँ मैं
इन फूलों पत्तों और पहाड़ों में, खोजता हूँ कौन हूँ मैं
क्या रिश्ता है मेरा इनसे, कबसे जुड़ा हूँ इनसे
मिल जाना चाहता हूँ आज, कभी ना मिला था जिनसे

मेरे रग रग को जो छू रही, उस मिटटी में खो जाना चाहता हूँ
हर सांस जहां से आ रही, उस धरती में बो जाना चाहता हूँ
ताकि निकलूं फिर खिल के, पत्तों में और फूलों में
बंध जाऊं और लहराऊँ, फिर सावन के झूलों में

विचारों से परे हो जाऊं, मैं कहीं खो जाऊं
किसी वृक्ष की ओट में, मैं कहीं सो जाऊं
उड़ जाऊं ब्रह्माण्ड में, दूरी वो तय कर जाऊं
युगों युगों को प्रेरित करे, वो कहानी मैं बन जाऊं

पुनीत वर्मा, मिशन ग्रीन दिल्ली

Baikunth Kaun Jaae

जब बैकुंठ स्वयं आए
तो बैकुंठ कौन जाए
कोटि कोटि योनियों के
भृमण से कान्हा खींच के लाए
अब बैकुंठ कौन जाए

बृंदा के वन में
कदम्ब के डारन पर
झूला झूलें सब सखियाँ
काल को दूर भगाए
अब बैकुंठ कौन जाए

कालिंदी के कूलन पर
वृषभान के कांधन पर
हलधर हाथ लगाए
अब बैकुंठ कौन जाए

माखन चोर ने चित को लियो चुराए
मोरपंख सर पर क्या धरयो
स्वर्ण चकित चकराए
बन कर भ्रमर बृंदाबन घूमे
गुंजन चहुं ओर मचाए
अब बैकुंठ कौन जाए

चकित चितवन हेरे चहुं दिस
मन हर्षित उलसित दोऊ दृग नीर बहाए
हस्त जोड़ यह विनय सुनो मुरारी
पीड़ हरो भव पार उतारी
तन मन अर्पण करते जाए
अब बैकुंठ कौन जाए

Khoj Raha Hun Ratno ko, Pune ke Darbaar Mein

जीवन की यात्रा में, इस शहर ने बुलाया है
दिल्ली के इस बालक को, खिलाया है पिलाया है
दरख्तों की ओट ने, लवासा की बोट ने
मोहित कर डाला मुझको, मराठाओं के फोर्ट ने

धीरज से चलते चलते, सीमाओं को बदलते बदलते
आज यहां पहुंचा हूं, भारत में टहलते टहलते
अमित इस संसार में, स्वप्नाली पूर्ण भंडार में
खोज रहा हूँ रत्नों को, पुणे के दरबार में

शशि तले बैठा हूँ आज, गिन रहा इन तारों को
नमन कर रहा इस निकिता को, जन्मा जिसने हज़ारों को
विजय पताका लहराने वाले, मराठा ध्वज फहराने वाले
उन वीरों से प्रेरित हो रहा, जो थे दुश्मन को हिलाने वाले

झुकता हूँ हे श्रीनाथ, पूजा मैं करता हूँ
तेरे इस शहर को, नमन मैं करता हूँ
तरण की अप्सरा से, जैसे
मुलाकात सी हो गयी
पुणे की इस धरती से, गहरी बात सी हो गयी

विचारों से अविज्ञान हो रहा, महाराष्ट्र में हूँ खो रहा
कविता के जरिये सलाम करता हू ,सभी को प्रणाम करता हूँ

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