Jhatak di Geeli Chunar

झटक दी गीली चूनर
अल्हडपन से

कुछ बूंदें
हज़ार टुकड़ों में
बिखर गईं

ठंडी फुहारों सी
चेहरे को छू कर
कुछ यादें बन कर
ज़ेहन को पार कर

हौले से
उतरती गईं
गहराइयों में
दिल की

चूनर तो सूख गई
सूखनी ही थी
पर
उठी जो लहर उसकी सरसराहट
छप गई
उम्रों के लिए

लहरों में खिले रंग
सराबोर रखते हैं
अब भी

रंगों लहरों गीलेपन की थरथराहट से
कम्पित है तरंगित है
अंग प्रत्यंग
झंकृत मधुर सुवासित
वो चूनर की
मुस्कुराहट

Itwaar Ki Alas Bhari Subah

छज्जे से तनिक झांक कर देखें
अलस सुब्ह का मौसम
कुछ पत्ते
बेलौस से उड़ते जाते
बिछड़ गए लगता
अपने पेड़ से

किसी गौरैया से मुलाक़ात हो गई
हवा की ताज़गी
उड़ते उड़ते
कानों में फुसफुसाई

कब तक भला यूं ऊँघते रहेंगे
कम्बल की ऊनी महक
सूंघते रहेंगे

माना की आज इत्तेवार है
सूरज को भी पता हो गया ये
तभी न कोहरे की चादर में सिमट कर
अपनी ही गर्मी से लिपट कर
मना रहा है छुट्टी वो

मगर मैं क्या करूँ
झांका किया छज्जे से बार बार
अनेक बार
लगातार

यार कोई तो आ जाओ
इस इत्तवार को
इत्तवार बना जाओ

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