गुरु का अनुसरण करने वाली शिष्या

अगर मैं किसी व्यक्ति या वस्तु से प्रभावित हो गया हूँ और अगर मैं उसकी तरह बनना चाहता हूँ तो यह जरूरी नहीं की मैं उसकी विशेषताओं को भी ग्रहण कर रहा हूँ. यह उसी तरह है की मैं सूरज के प्रकाश को देख कर यह समझ रहा हूँ की मैने सूरज के गुणों को ग्रहण कर लिया है. लेकिन मैंने जब अध्यन किया तो पाया की सूरज के प्रकाश को देखना और उसकी सतह या भूमि को समझना तो जरूरी है ही लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है सूर्य की भूमि पर चलने का आनंद प्राप्त करना.  और जब मैं सूर्य की सतह पर चल रहा हूँ तो मुघे यह भी समझना होगा की सूर्य का प्रकाश इसलिए है क्योंकि वो अन्दर से काफी संघर्ष कर रहा है. हम पौन्ड्रक (एक राजा जो अपने आप को भगवान् कहता था और भगवान् कृष्ण की तरह भेस बना कर रहता था ) बनके इश्व्वर या गुरु जैसे नहीं बन सकते बल्कि हमे इश्वर के गुणों को प्राप्त करने के लिए सुदामा बनना पड़ता है. पौन्ड्रक जैसे लोग जो अपने आप को गुरु या भगवान् मानते हैं, कभी इश्वर या गुरु जैसे नहीं बन पाते. लेकिन सुदामा की तरह अगर इश्वर या गुरु की सेवा की जाए, तो इश्वर या गुरु प्रेम पूर्वक हमारे मन और बुद्धि में अपने गुणों को activate कर देते हैं. अब प्रशन यह है की हमे यह पता कैसे चलेगा की हम अपने गुरु के गुणों को ग्रहण कर रहे हैं या नहीं ? एक छोटी  सी  बड़ी ही प्यारी  बच्ची  थी  जो अपने पिता को देखती  थी और हमेशा उनके कार्यों का अध्यन करती  रहती थी. वो देखती थी की कैसे उसके पापा हर प्रॉब्लम का सोलूशन बड़ी समझदारी से निकाल देते थे. वो उनको ही अपना गुरु मानती थी और उनकी तरह ही बनना चाहती थी. एक दिन वो किसी मुश्किल में फंस गयी और बहुत ही दुखी और परेशान रहने लगी. और वो अपनी प्रॉब्लम अपने पापा के पास ले कर गयी क्योंकि उसे पता था की पापा ही हैं जो उसकी प्रॉब्लम सोल्व कर सकते हैं. और इस तरह उसकी प्रॉब्लम साल्व हो गयी. इसी तरह जब भी कभी भी वो मुसीबत मैं फंस जाती  थी तो पप्पा उसको बचा लेते थे. हर बार वो पापा के पास आती और कहती “पापा देखों कितनी बड़ी प्रॉब्लम आ गयी है”. लेकिन एक दिन जब पापा उसके साथ नहीं थे तो वो अकेली पड़ रही थी. तब उसे याद आया की पापा भी जब किसी प्रॉब्लम को सोल्व करते थे तो वो भी अकेले होते थे और कोई उनकी मदद करने वाला नहीं होता था. यह सोचकर उसने अपने आप से कहा “पापा आप चिंता ना करें … इस प्रॉब्लम को मैं देख लूंगी …… आखिर में आपकी बेटी हूँ ” … और उसके यह कहते ही प्रॉब्लम का सलूशन उसके दिमाग में आ गया और उसने संघर्ष करते हुए उसको साल्व कर लिया. इस तरह उस बच्ची ने अपने गुरु (अपने पिता ) के गुण ग्रहण कर लिए.

The Sea of Knowledge

1950 में ऐसा क्या हुआ जिसने इंसान की जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया. कई ज्ञान की नदियाँ ने, जो कई ज्ञान कुंडों से निकल रही थी, एक विशाल समंदर का रूप धारण कर लिया जिसको आज हम इन्टरनेट कहते हैं. अडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट्स पे काम करने वाली agency ने हमे वो पहली नदी दी जिसने डिफेन्स और Educational Universities से निकलने वाली नादिओं को अपने साथ मिला लिया और इस विशाल समंदर की शरुआत की. जब मैने इस समंदर के अन्दर झाँक कर देखा तो मैने एक दिव्य शक्ति का एहसास किया जिसने इन् सब कुंडों से निकलने वाले ज्ञान के बहाव को नियंत्रित कर रखा था और उस दिव्य शक्ति का नाम बेकबोन था जो काफी सारे routers को मिला के बना था. router एक गाँव के डाकिये की तरह होता है जिसको यह याद है की कौन सा घर कहाँ पर है और उसको “हब” की तरह एक पत्र को देने के लिए हर घर में जाकर पूछने की जरूरत नहीं होती. यह Router का समूह समुद्री मणिओं से बनी माला की तरह प्रतीत होता है और जो इस माला की दिव्य शक्ति को जानकर इस दिव्य शक्ति को प्रणाम करता है उसको बिना किसी बाधा के विश्व ज्ञान की प्राप्ति होती है. टेलनेट, FTP , आर्ची और gopher उन् गुरुओं की तरह थे जिन्होंने हमे इस समंदर से ज्ञान को निकालने और बांटने का तरीका बताया और गूगल जैसे शिष्ययों को जन्म दिया. और फिर जब ज्ञान के दुसरे कुंडों से जुड़ने की बात आई तो एक दूसरे की भाषा को समझने में दिक्कत आने लगी. इस दिक्कत से निबटने के लिए एक गुरुकुल बनाया गया जहां इस ज्ञान को बांटने के लिए और दूसरे कुंडों से communicate करने के लिए एक भाषा मानक website (compatibility standards फॉर language ,प्रोटोकॉल और algorithms ) बनाई गयी जिसको हम RFC (रेकुएस्ट फॉर कमेन्टस ) कहते हैं जो की सभी कुंडों के groups के और गुरुकुल ( IAB IETF और IESG ) के लोगों के विचारों को जानकार बनाई जाती है.

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