निधि भरे संसार में , इस गहरे आकाश में – ना जाने क्या खोजता हूँ, इस गहरे आभास में
यादों का जो दरस कराए, बन गया वो मेला हूँ – इस भरी महफ़िल में, ना जाने क्यों अकेला हूँ
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तन्हाई की इस खाई में , चेष्टा पल पल करता हूँ – थोडा ऊपर चढ़ कर आऊं, कोशिश पल पल करता हूँ
रख कर मुघ्को भूल गया जो, उस वादक की बेला हूँ – इस भरी महफ़िल में, ना जाने क्यों अकेला हूँ
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आज अकेले हम सब बैठे, वक़्त साथ में बैठ रहा है – हलके हलके छलक रहा जो, जाम भी हमसे ऐंठ रहा है
अदृश्य कोण में चमक रही जो, बन गया वो तकिला हूँ – इस भरी महफ़िल में, ना जाने क्यों अकेला हूँ