ना जाने क्यों अकेला हूँ

निधि भरे संसार में , इस गहरे आकाश में – ना जाने क्या खोजता हूँ,  इस गहरे आभास में
यादों का जो दरस कराए, बन गया वो मेला हूँ – इस भरी महफ़िल में, ना जाने क्यों अकेला हूँ
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तन्हाई की इस खाई में , चेष्टा पल पल करता हूँ – थोडा ऊपर चढ़ कर आऊं, कोशिश पल पल करता हूँ
रख कर मुघ्को भूल गया जो, उस वादक की बेला हूँ – इस भरी महफ़िल में, ना जाने क्यों अकेला हूँ
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आज अकेले हम सब बैठे, वक़्त साथ में बैठ रहा  है – हलके हलके छलक रहा जो, जाम भी हमसे ऐंठ रहा है
अदृश्य कोण में चमक रही जो, बन गया वो तकिला हूँ – इस भरी महफ़िल में, ना जाने क्यों अकेला हूँ

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गम का वो पल बीत गया

याद में तेरी पल पल खोया, आज अचानक मैं हूँ रोया – गहरी आँखों से जो तूने, प्रेम का ऐसा बीज था बोया

तूने हंस कर मुझको देखा, दुनिया मैं तो जीत गया – ठहर गया था जुबां पे तेरी, गम का वो पल बीत गया

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यादों की इस भट्टी में , सोना यूँ ही तपना था – साथ तेरे जो आज बंध गया, बंधन वो तो सपना था

हाथ थाम कर जो था गाया, गाता मैं वो गीत गया – तूने हंस कर मुझको देखा, दुनिया मैं तो जीत गया

ठहर गया था जुबां पे तेरी, गम का वो पल बीत गया

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दिल पर मेरे आज चढ़ गयी , मेहँदी तेरे हाथों की – देख अचानक ख़तम हुई है, आज जुदाई रातों की

प्रेम नगर की नदिया में, डूब तुम्हारा मीत गया – तूने हंस कर मुझको देखा, दुनिया मैं तो जीत गया

ठहर गया था जुबां पे तेरी, गम का वो पल बीत गया

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