भारत के महान ऋषि

महर्षि आर्यभट प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे।आर्यभट ने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। उन्होंने आर्यभटीय नामक महत्वपूर्ण ज्योतिष ग्रन्थ लिखा, जिसमें वर्गमूल, घनमूल, सामानान्तर श्रेणी तथा विभिन्न प्रकार के समीकरणों का वर्णन है

महर्षि नागार्जुन ने रसायन शास्त्र और धातु विज्ञान पर बहुत शोध कार्य किया। रसायन शास्त्र पर इन्होंने कई पुस्तकों की रचना की जिनमें ‘रस रत्नाकर’ और ‘रसेन्द्र मंगल’ बहुत प्रसिद्ध हैं।

ऋषि भारद्वाज ने ‘यन्त्र-सर्वस्व’ नामक बृहद् ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ का कुछ भाग स्वामी ब्रह्ममुनि ने ‘विमान-शास्त्र’ के नाम से प्रकाशित कराया है। इस ग्रन्थ में उच्च और निम्न स्तर पर विचरने वाले विमानों के लिये विविध धातुओं के निर्माण का वर्णन है। चाणकय ने अपने पूर्व में हुए अर्थशास्त्र के रचनाकारों में ऋषि भारद्वाज को सम्मान से स्वीकारा है।

महर्षि कणाद परमाणु की अवधारणा के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले महर्षि कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।

योग के रचनाकार महर्षि पतंजलि संभवत: पुष्यमित्र शुंग (195-142 ईपू) के शासनकाल में थे।

महर्षि चरक पहले चिकित्‍सक हैं, जिन्‍होंने पाचन, चयापचय और शरीर प्रतिरक्षा की अवधारणा दुनिया के सामने रखी। उन्‍होंने बताया कि शरीर के कार्य के कारण उसमें तीन स्‍थायी दोष पाए जाते हैं, जिन्‍हें पित्‍त, कफ और वायु के नाम से जाना जाता है। ये तीनों दोष शरीर में जब तक संतुलित अवस्‍था में रहते हैं, व्‍यक्ति स्‍वस्‍थ रहता है। लेकिन जैसे ही इनका संतुलन बिगड़ जाता है, व्‍यक्ति बीमार हो जाता है। इसलिए शरीर को स्‍वस्‍थ करने के लिए इस असंतुलन को पहचानना और उसे फिर से पूर्व की अवस्‍था में लाना आवश्‍यक होता है।

महर्षि अगस्त्य ने 4000 साल पहले इलेक्ट्रिक सेल का आविष्कार किया था।

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