मैं वो कठपुतली हूँ

कर्म जिसका मनोरंजन है, जीवन का दुखभंजन है
समाज को संतुलित कर रही, डोर वो पतली हूँ
खोई है जो फूलों में, सावन के झूलों में
नष्ट हो जाएगी इक दिन जो, मैं वो कठपुतली हूँ

त्याग दी जाती है, कठपुतली जब काम ना आए
कर्म को जो भूल गयी, स्मरण उसका नाम ना आए,
कठपुतली जिससे नाच रही है, मैं वो बिजली हूँ
नष्ट हो जाएगी इक दिन जो, मैं वो कठपुतली हूँ

कठपुतली से मोहित होना, मूर्खता की निशानी है
खो गयी इच्छाओं में, बेकार वो जवानी है
जल  तक जो सीमित रहती , मैं वो मछली हूँ
नष्ट हो जाएगी इक दिन जो, मैं वो कठपुतली हूँ

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उन शेहनशाहों की कहानी, ये तलवारें बता रही हैं

mughalमुगलों की शान-औ-शौकत, ये मजारे बता रही हैं
दिल्ली का इतिहास, ये दीवारें बता रही हैं
दौर था वो जब झुकता था जमाना, बजती थी ग़ज़लें – बजता था गाना
उन शेहनशाहों की कहानी, ये तलवारें बता रही हैं

ये दौर है उस शहर का, मजहब जहां जुड़ते हैं
यमुना के किनारे पर, शांति ध्वज उड़ते हैं
नृत्य कृष्ण भक्त करते जहां, इस्कॉन की गलियों में
खोये रहते भवरे जहां, फूलों की कलियों में
बढ़ते शहर की कहानी,ये कतारें बता रही हैं
दौर था वो जब झुकता था जमाना, बजती थी ग़ज़लें – बजता था गाना
उन शेहनशाहों की कहानी, ये तलवारें बता रही हैं

अक्षरधाम के किनारे, बसता हूँ मैं
शहर को सुधारे, वो रस्ता हूँ मैं
आवाम की तरक्की, ये मीनारें बता रही हैं
सूरज की धूप को, ये दीवारें छुपा रही हैं
दौर था वो जब झुकता था जमाना, बजती थी ग़ज़लें – बजता था गाना
उन शेहनशाहों की कहानी, ये तलवारें बता रही हैं

निट का हूँ मैं, एक साधारण कर्मचारी
दिल्ली में मेट्रो की, करता हूँ सवारी
कलयुग में सोया हूँ, कविताओं में खोया हूँ
दिल्ली की सूरत, ये अखियां जता रही हैं
दौर था वो जब झुकता था जमाना, बजती थी ग़ज़लें – बजता था गाना
उन शेहनशाहों की कहानी, ये तलवारें बता रही हैं

– पुनीत वर्मा की कलम से

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ग्रीन टेक की कविता गाकर, सुन्दर ये संसार हुआ

शंका की अब सुई टूटी, खत्म हमारा वहम हो गया
जबसे उनकी पीड़ा देखि, खत्म हमारा अहम हो गया
उनको अपने गले लगाकर, सपना ये साकार हुआ
ग्रीन टेक की कविता गाकर, सुन्दर ये संसार हुआ

शिवाजी का काम बिगाड़ा, हाथ मिलाकर औरंगजेब ने
भोंसले ने हार ना मानी, हाथ उठाया फुल वेग से
गोबिंद सिंह जी अमर हुए, वज़ीर खान पर वार हुआ
ग्रीन टेक की कविता गाकर, सुन्दर ये संसार हुआ

आज अचानक सपना देखा, दुश्मन को भी अपना देखा
झट से उनको माफ़ कर दिया, रूप उन्होंने अपना देखा
सागर अपना हृदय बन गया, भावुकता का वार हुआ
ग्रीन टेक की कविता गाकर, सुन्दर ये संसार हुआ

शहर को अपने आज बचाएं, मिशन ग्रीन की कविता गाएँ
करुणा रुपी घी से हर पल, ग्रीन टेक की ज्योत जलाएं
भोग सुदामा के हाथों का, जल्दी से स्वीकार हुआ
ग्रीन टेक की कविता गाकर, सुन्दर ये संसार हुआ

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