Mobile Commando for Women

हर रोज सुबह एक खबर ऐसी होती है जो दिल्ली में महिलाओं और बुजुर्गों की सुरक्षा पर सवाल उठा देती हैं, और हम में से हर कोई सोचता है की सरकार कोई रास्ता क्यों नहीं खोजती जिससे यह दुर्घटनाएं ना हो. क्या ऐसा कोई तरीका नहीं जिससे ना केवल महिलाएं बल्कि बुजुर्ग और बच्चे भी दिल्ली में सुरक्षित रह सकें.  क्या कोई ऐसा तरीका नहीं जिससे वारदात के स्थान और क्रिमिनल को एट वंस ट्रैक किया जा सके. आजकल दिल्ली में हमने देखा है की सबके पास मोबाइल फ़ोन available है , तो क्या कोई ऐसा सॉफ्टवेर नहीं बना सकते जिससे विक्टिम महिला को ट्रैक किया जा सके या emergency situation में मोबाइल फ़ोन के जरिये वो अपने घरवालों, दोस्तों या दिल्ली पोलिस को अलर्ट मेसेज भेज सकें. हाल ही में मैने जब खोजना शुरू किया तो पाया दिल्ली में ही एक जानी मानी security सॉफ्टवेर संस्था इस काम में लगी हुई है और कई प्रसिद्ध मोबाइल मोडल्स के लिए उन्होने यह सॉफ्टवेर तैयार किया है. जी हाँ जब मैने Eyewatch का नाम सुना  तो मैं यह देखने के लिए उत्सुक हो उठा की यह सॉफ्टवेर रुपी कमांडो कैसे हमारे रक्षक की तरह काम करता है  और हम पूरे शहर में जहां कहीं पर भी घूम रहे हों, मोबाइल का एक बटन दबाते ही हमारी जी पी एस लोकेशन की जानिकारी,  हमारे माता पिटा या दोस्तों तक सेकंड्स में पहुंचा देता है ताकि वो तुर्रंत हमे locate करके हमारी रक्षा कर सकें. एक बीमार व्यक्ति हार्ट attack जैसी situation में अपने डॉक्टर को अलर्ट कर सकता है या एक गवाह किसी अनहोनी की situation में अपने वकील को अलर्ट कर सकता है. आप Eyewatch की वेबसाइट पे जाकर आज ही इस सॉफ्टवेर का इस्तेमाल शुरू कर सकते हैं. हमे शुक्र गुज़ार होना चाहिए Eyewatch की टीम का, जिन्होने दिन रात mehnat करके हमे यह solution दिया. मैं मिशन ग्रीन दिल्ली की तरफ से  Eyewatch Team का तहे दिल से शुक्रिअदा करता हूँ और उम्मीद करता हूँ की जल्द ही हमे इस सिक्यूरिटी टीम से जबरदस्त solutions प्राप्त होंगे.

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Meaning Behind Words

यह जरूरी नहीं की हम जो देखते हैं और समझ लेते हैं वो सच ही हो. सचाई हमेशा विज्ञानिक तरीकों से जानी जा सकती है. जिस चीज़ पे हम विश्वाश करते हैं और उसे सच मानने लगते है, हमारा फ़र्ज़ है की हम उस सच को अलग अलग तरीकों से वेरीफाई करें. जरूरी नहीं की दूर सड़क पे जो पानी नजर आ  रहा है वो पानी ही हो, वो नजर का धोखा भी हो सकता है. और ये भी जरूरी नहीं की हमेशा सच बोलने वाला इंसान आप से जो अभी कह रहा है वो सच ही हो.  केवल सत्यवादी इंसान के शब्दों पे विश्वाश कर लेना ठीक नहीं होगा. हमको अगर सत्य को जानना है तो उन् सत्य प्रकट करने वालें शब्दों की गहराई में जाना होगा. ऐसा हो सकता है की वो कहे गए वाक्य सच हों लेकिन उनका अर्थ कुछ और ही हो. हम एक उदाहरण ले कर समझते है.. सोचो की दो व्यक्ति फ़ोन पे इश्वर की बातें कर रहे हैं या वो भारतीय क्रिकेट प्लायेर्स की बातें कर रहे हैं, तो यह जरूरी नहीं है की जो बात होते हुए आप सुन रहे हो , वो इश्वर या क्रिकेट से जुडी हुई हो. शब्दों में और उनके अर्थ में हमेशा भिन्नता हो सकती है. अगर हम महाभारत काल में जाएं और द्रोनाचार्या जी के अंत के बारे में पड़ें तो हम पाएंगे के जब उन्होने अपने पुत्र अश्वथामा की वीरगति को प्राप्त होने की खबर धरमराज युधिस्ठिर से सुनी जो कभी असत्य नहीं बोलते थे तो वो दुःख के कारण समाधि में चले गए. लेकिन सत्य यह था की अश्वथामा नाम का हाथी मारा गया था और उनका बेटा जीवित था और आज तक जीवित है. इसलिए जरूरत है की जब जब भी हमे कोई बात कही जाए उसके प्रमाण जानना जरूरी है. और अगर लिखित में भी हमारे सामने कोई बात पेश की जाए तो उसमे लिखे गए शब्दों का मतलब जानना जरूरी है.

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Spirituality and Science

अगर हम अपनी लाइफ के ऊपर लिखना शुरू करें तो शायद इतना लिख जाएंगे की उन् घटनाओं को कई किताबों में छापा जा सकता है. लेकिन क्या कारण है की हम अपने साथ हुई या अपने सामने हुई घटनाओं को लिखते नहीं. और क्या हम जो लिख्नेगे उसको हमारे readers एक्सेप्ट करेंगे ? जब भी मैं इतिहास की तरफ देखता हूँ तो पाता हूँ की जितने भी लेखक , कवी और इतिहासकार हुए हैं, सभी ने अपने समक्ष हुई घटनाओं को बड़े ही मनभावन अंदाज में कहानी या कविता बनाकर कर एक्सप्रेस किया है. और वो कहानी हमे सही और गलत का फर्क समझाने में सक्षम होती है. मैं जब भी किसी ग्रन्थ को उठा कर देखता हूँ तो पाता हूँ की अध्यात्म और विज्ञान दो अलग वृक्ष नहीं अपितु एक ही देविक वृक्ष के सामान है. अध्यात्म को धीरज और विशवास के साथ समझना और उसके पीछे दी गयी शिक्षा को जानना ही विज्ञान है. और अगर विज्ञान के बसिक्स को जान जाते हैं तो उससे तकनोलोजी को समझना और आविष्कार करना आसान हो जाता है. दिल्ली के एक स्कूल में शिक्षा लेते हुए मैं अनुभव करता रहा और उस अनुभव के दोरान मैने पाया की अगर शिक्षा देते समय अद्यापक विद्यार्थी को यह पता ही ना चलने दे की वो विद्या ले रहा है तो उससे अच्छा और समर्पित अद्यापक कोई हो ही नहीं सकता. ईस्ट दिल्ली के लवली पब्लिक स्कूल में विद्या लेते समय मुघे कई ऐसे अध्यापक मिले. और प्रधानाचार्या जी भी हमेशा यह प्रयास किया करती थी की विद्यार्थिओं को बसिक शिक्षा के साथ साथ अध्यात्म का भी ज्ञान हो. मुघे आज भी याद है जब मैं और मेरा मित्र चितवन, किताबों के उस ज्ञान को कविताओं और स्य्म्बोल्स में बदल दिया करते थे जिससे तत्व और भोतिक विज्ञान जैसे विषय और आसान और मजेदार हो जाते थे. और यही कारण था की दो बार हमारे विज्ञान के प्रोजेक्ट्स राज्य स्तर तक पहुँच पाए थे. और अब मैने पाया है की अध्यात्म में दिया गया ज्ञान और तरीके विज्ञान, मैनेजमेंट और लीडरशिप को समझने के बेस्ट तरीके हैं बस जरूरत है उनमे गहराई में जाने की और अपने दैनिक कर्मों में उनको इम्प्लेमेन्ट करने की.

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