अपनी तो खत्म हो गयी, अब आपकी बारी है

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खुदा की मोह्हबत में , मदहोश कायनात सारी है
जब तक वो साथ है, जशने-जिंदगी जारी है
जीवन की जेल में, वर्ना हम जीते कैसे
दर्द ये जीवन का, वर्ना हम पीते कैसे
अपनी तो खत्म हो गयी, अब आपकी बारी है

कहता है अपना ये मन, फिर आपको बुलाऊँ मैं
टकराऊं मेह के प्यालों को, शराब को ड्ढलाऊँ मैं
बंदिश मुघसे जीवन की, क्यों सहन नहीं होती है अब
सोने की ये झूठी लंका, क्यों दहन नहीं होती है अब
नाटक इस जीवन का, देखो अब तक जारी है
अपनी तो खत्म हो गयी, अब आपकी बारी है

करता हूँ सलाम सबको, तो फिर मैँ अब चलता हूँ
डूबते हुए सूरज के साथ, तो फिर मैँ अब ढलता हूँ
हाज़िर कर दूँ खुद को अब, खुदा के दरबार में
खुशियां आएं जीवन में, और इस संसार में
वर्मा के इन् होठों पर , देखो कविता जारी है
अपनी तो खत्म हो गयी, अब आपकी बारी है

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बैठ के अब में ताक रहा हूँ, इतिहास की दीवारों को

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जीवन अपना थम गया है, पीपल की इस छावं में
जीवन शक्ति खत्म हो रही, आगे बढ़ते पावँ में
जोड़ रहा हूँ मन में अपने, टूटी हुई मीनारों को
बैठ के अब में ताक रहा हूँ, इतिहास की दीवारों को

पलक झपकती आंखों से, ना तुझको मैँ पहचान रहा हूँ
भीतर अपने डूब रहा हूँ, ना तुझको अब मैं जान रहा हूँ
मुँह मोड़कर अपनों से, हूँ देख रहा हज़ारों को
बैठ के अब में ताक रहा हूँ, इतिहास की दीवारों को

मनोभाव सब खत्म हो रहा, हमदर्दी मुझमे खत्म हो रही
बैठे बैठे आज अचानक, बेदर्दी मुझमे ख़त्म हो रही
कोस रहा हूँ बैठे बैठे , टिम टीमाते सितारों को
बैठ के अब में ताक रहा हूँ, इतिहास की दीवारों को

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कब तक मैं रुका रहूं, जब फितरत है मेरी बहते रहने की

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कब तक मैं चुप चाप रहूं ,जब हसरत है मेरी कहते रहने की
कब तक मैं रुका रहूं, जब फितरत है मेरी बहते रहने की
चलता हूँ दोस्त अब मैं, चुनौती भरे रास्तों पर
आखिर कब तक अटका रहूं,जब फितरत है मेरी ढहते रहने की

रुकना जीवन की जर्नी में, कीचड़ का काम है
बहते रहना हर हाल में ,नदिया का काम है
चलता हूँ दोस्त अब मैं, चुनौती भरे रास्तों पर
आखिर कब तक धीमे से बोलूं , जब फितरत है मेरी चहकते रहने की

एहसान है आपका, इतना कुछ मुझको दिया
दिल्ली को ग्रीन बनाया, इतना प्यार मुझको किया
चलता हूँ दोस्त अब मैं, चुनौती भरे रास्तों पर
कब तक चलूँ सीधा मैँ, जब फितरत है मेरी भटकते रहने की

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