छोड़ के सब कुछ इस मिटटी में , कहीं अचानक खो जाएगा

मन को अपने शांत करो अब , इतना क्यों तुम तड़प रहे हो
सबको जल्दी माफ़ करो अब , इतना क्यों तुम भड़क रहे हो
पल दो पल का खेल है सारा, खत्म तू पल में हो जाएगा
छोड़ के सब कुछ इस मिटटी में , कहीं अचानक खो जाएगा

क्यों तू इतने ख्वाब सजाए , इतने सारे महल बनाए
फसकर इन सब चीज़ों में, क्यों तू सर का भोझ बढ़ाए
प्रभु प्रेम का गाना सुनकर, पल में अब तू सो जाएगा
छोड़ के सब कुछ इस मिटटी में , कहीं अचानक खो जाएगा

निकल जा घर से लोक भ्रमण पर , जीवन अपना आज तू जी ले
छोड़ के सब कुछ जैसा तैसा, ग्रीन टेक का प्याला पी ले
मिशन ग्रीन की कविता सुनकर , मुक्त अभी तू हो जाएगा
छोड़ के सब कुछ इस मिटटी में , कहीं अचानक खो जाएगा

भूल के सारी दुनिआ को, वर्मा कविता लिख रहा है
दिल्ली का हर शांत हृदय अब , मिशन ग्रीन पे दिख रहा है
अंधकारमय बुद्धि में अब, आज सवेरा हो जाएगा
छोड़ के सब कुछ इस मिटटी में , कहीं अचानक खो जाएगा

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