मन की स्थिरता शुरू हो गयी

हंसी तुम्हारी कहाँ खो गयी, आँखें भी अब गुमसुम हो गयी
दुनिआ तुमको झूठ लग रही,  कैसी दुविधा आज हो गयी
उड़ता पंछी कहाँ खो गया, मुक्त तुम्हारा हृदय हो गया
बहती नदिया झील बन गयी,मन की स्थिरता शुरू हो गयी

योगी जीवन योगी काया, बाकी सब कुछ सिर्फ है माया
कलियाँ सारी आज सो गयी , जो थी होनी आज हो गयी
चिंतित बुद्धि शांत हो गयी , मन का सूरज उदय हो गया
बहती नदिया झील बन गयी,मन की स्थिरता शुरू हो गयी

सुख दुःख का ये खेल सताए , जीत हार का जाल बिछाये
मिशन ग्रीन का जादू ऐसा , हमको तो ब्रह्माण्ड बुलाए
शांत आपका हृदय हो गया, कविता मेरी सफल हो गयी
बहती नदिया झील बन गयी,मन की स्थिरता शुरू हो गयी

– पुनीत वर्मा की कलम से

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