हर वो चीज़ जो अभी हमारी आँखें देख रही हैं और कल नहीं देख पाएंगी हमेशा इस संसार में रहती है. आँख अगर देख पाती है तो हम खुश रहते हैं और जब आँख को वो चीज़ नहीं दिखती तो हम दुखी हो जाते हैं. यह विकार आँखों का है और हमे यह ठीक करना होगा. हर रात मैं एक सपना देखता हूँ और महसूस करता हूँ की मैं पेड़ पर बैठ कर फल खा रहा हूँ और अपने माता पिता को अपनी आँखों के सामने देख रहा हूँ लेकिन कुछ देर की नींद के बाद जब मैं जागता हूँ तो देखता हूँ की ना माता है ना पिता है और ना ही फल. स्वप्न टूटने पर माता और पिता भले ही इन् आँखों से ना दिखें लेकिन वो दोनों अविनाशी रूप में हमेशा हमारे साथ रहते हैं. उनका प्यार और शीक्षा नित्य हमे मिलता रहता है और वो हमे सीखाते हैं की शरीर रुपी रसायन बनता और बिगड़ता रहता है लेकिन वो कभी इस रसायन से जुडे हुए नहीं थे और हमेशा हमारी चेतना में विद्यमान रहेंगे. अगर मेरा जिगरी दोस्त कल अपना चेहरा बदल के आ जाता है और मैं उसको पहचानने से इनकार कर देता हूँ तो यह मेरी आँखों का विकार होगा क्योंकि मैं अपने दोस्त को उसके नस्वर शरीर से नहीं बल्कि उसके विचारों से अपना जिगरी दोस्त मानता हूँ . इस तरह अगर में आँखों के विकार को ठीक कर लेता हूँ और शरीरों की सीमा रेखा से बहार निकल कर देखता हूँ तो भले ही मैं मुक्त और आनंदमाय महसूस करूँ लेकिन इसका मतलब यह नहीं की मेरी अद्यात्मिक अणु आत्मा अपने सूर्य रुपी स्त्रोत में वापस पहुँच गयी है. मैं अपने शीशे में अपना चेहरा देखता हूँ और जब मैं उसको छुने के कोशिश करता हूँ तो शीशा को ही महसूस करता हूँ क्योंकि यह नज़र का विकार है. और अगर हम नज़र के विकार को ठीक नहीं करेंगे तो इस मायावी नगरी में वो देखते रहेंगे जो है ही नहीं. और जो सच है उसको कभी नहीं देख पाएंगे.