रूठ रूठ कर चेहरे से, चिंता की इक नदी बहा दी – सर्द भरी तन्हाई में, तेरी हंसी ने आग लगा दी
दिल तक उनके लेकर जाना, खुशिओं की इस बस्ती को – समझा मैंने हर पल को, हर पल की इस मस्ती को
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देख के अपनी शाखा को, दिल को अपने क्यों जलाए – छेड़ छेड़ के यादों को , मन को अपने क्यों रुलाए
आशा की इस नदिया में, पार लगा दो कश्ती को – समझा मैंने हर पल को, हर पल की इस मस्ती को
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क्रोध का प्याला पीते पीते, तन को तेरे क्या हो गया – अन्धकार को जीते जीते, मन को तेरे क्या हो गया
खुद से थोडा प्यार करो तुम, प्यार करो इस हस्ती को – समझा मैंने हर पल को, हर पल की इस मस्ती को