अगर मेरा यह सर किसी के आगे झुकने से हमेशा इनकार करता है और मेरे यह हाथ किसी को नमस्कार करने के लिए नहीं जुडते तो मुघे यह समझ लेना चाहिए की मैं उस गाड़ी की तरह हो गया गया हूँ जिसका कर्म तो चलना है और लिबरेशन या मुक्ति तक पहुँचाना है लेकिन अभी उसमे कुछ खराबी आ गयी है. मुघे यह समझना होगा की अगर मैं किसी को झुककर प्रणाम करता हूँ तो मुझमे निष्ठां की भावना पैदा होती है और यह निष्ठा की भावना, मेरे दिल और दिमाग में सामने खड़े हुए मनुष्य की अच्छाईओं के बारे में सोचने की लिए मजबूर करती है और इस तरह में उस मनुष्य की अछाईओं को ग्रहण कर लेता हूँ और अपने आप को और निखार लेता हूँ. इस तरह मैं अभ्यास करता हुआ इश्वर के गुणों को समझने लगता हूँ और एक सीमा रेखा से अपने आप को बहार निकाल लेता हूँ. और समय के साथ जैसे जैसे मैं इस अभ्यास को और बड़ा देता हूँ तो मैं इश्वर के चरणों के और नजदीक पहुँच जाता हूँ और उनके गुणों को पहन कर आनंदमय महसूस करता हूँ. और अगर मैं उस आनंद को महसूस करता हूँ तो मेरे आसपास के सब प्राणी उस आनंद रस का अनुभव करने लगते हैं और वो भी इस मुक्ति मार्ग पर चलने के लिए उत्सुक हो जाते हैं. और इस तरह वो भी अभ्यास करते हुए निष्ठा भाव से प्रणाम करना सीख जाते हैं.