अगर हम अपनी लाइफ के ऊपर लिखना शुरू करें तो शायद इतना लिख जाएंगे की उन् घटनाओं को कई किताबों में छापा जा सकता है. लेकिन क्या कारण है की हम अपने साथ हुई या अपने सामने हुई घटनाओं को लिखते नहीं. और क्या हम जो लिख्नेगे उसको हमारे readers एक्सेप्ट करेंगे ? जब भी मैं इतिहास की तरफ देखता हूँ तो पाता हूँ की जितने भी लेखक , कवी और इतिहासकार हुए हैं, सभी ने अपने समक्ष हुई घटनाओं को बड़े ही मनभावन अंदाज में कहानी या कविता बनाकर कर एक्सप्रेस किया है. और वो कहानी हमे सही और गलत का फर्क समझाने में सक्षम होती है. मैं जब भी किसी ग्रन्थ को उठा कर देखता हूँ तो पाता हूँ की अध्यात्म और विज्ञान दो अलग वृक्ष नहीं अपितु एक ही देविक वृक्ष के सामान है. अध्यात्म को धीरज और विशवास के साथ समझना और उसके पीछे दी गयी शिक्षा को जानना ही विज्ञान है. और अगर विज्ञान के बसिक्स को जान जाते हैं तो उससे तकनोलोजी को समझना और आविष्कार करना आसान हो जाता है. दिल्ली के एक स्कूल में शिक्षा लेते हुए मैं अनुभव करता रहा और उस अनुभव के दोरान मैने पाया की अगर शिक्षा देते समय अद्यापक विद्यार्थी को यह पता ही ना चलने दे की वो विद्या ले रहा है तो उससे अच्छा और समर्पित अद्यापक कोई हो ही नहीं सकता. ईस्ट दिल्ली के लवली पब्लिक स्कूल में विद्या लेते समय मुघे कई ऐसे अध्यापक मिले. और प्रधानाचार्या जी भी हमेशा यह प्रयास किया करती थी की विद्यार्थिओं को बसिक शिक्षा के साथ साथ अध्यात्म का भी ज्ञान हो. मुघे आज भी याद है जब मैं और मेरा मित्र चितवन, किताबों के उस ज्ञान को कविताओं और स्य्म्बोल्स में बदल दिया करते थे जिससे तत्व और भोतिक विज्ञान जैसे विषय और आसान और मजेदार हो जाते थे. और यही कारण था की दो बार हमारे विज्ञान के प्रोजेक्ट्स राज्य स्तर तक पहुँच पाए थे. और अब मैने पाया है की अध्यात्म में दिया गया ज्ञान और तरीके विज्ञान, मैनेजमेंट और लीडरशिप को समझने के बेस्ट तरीके हैं बस जरूरत है उनमे गहराई में जाने की और अपने दैनिक कर्मों में उनको इम्प्लेमेन्ट करने की.