औररंगजेब की मृत्यु के बाद अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी भारत पर हावी हो गयी। प्लासी की लड़ाई ( 23 June 1757) में सेराज उद दौलह को हराने के बाद टीपू सुल्तान को हराकर ( 23 June 1757) मैसूर पर कब्ज़ा किया। 13 February 1739 को ईरान के नादेर शाह ने मुग़ल सम्राट मोह्हमद शाह (रंगीला) को करनाल की लड़ाई में हराकर दिल्ली सलतनत पर कब्ज़ा किया और सल्तनत का खजाना (कोहिनूर हीरा और शाही खजाना) लूट लिया और ईरान में तीन साल तक टैक्स माफ़ कर दिया। इस तरह भारतीय राज्यों को छल से जीता जाने लगा। अठारह सौ सतावन की लड़ाई में पूरा हिन्दुस्तान अंग्रेजों को देश से भगाने पर एक जुट हो गया। मराठा झांसी की रानी, तांत्या टोपे, नाना साहिब और हिन्दुस्तान के बादशाह बहादुर शाह जफ़र ने अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ी। लेकिन अपने ही कुछ लोगों के गदारी करने की वजह से हमे हार का मूह देखना पड़ा। भारत में लोग गुलामों की तरह जीने लगे। सबसे ज्यादा असर मुस्लिम समाज पर हुआ जिनको पांच सौ साल पुरानी मुग़ल साम्राज्य की समाप्ति देखनी पड़ी। भारत का सांस्कृतिक पतन करने के लिए अंग्रेजों ने कलकत्ता में बूचड़ खाने, शराब के महखाने और रेड लाइट एरिया बनाए।
भारतीय मुस्लिम समाज इतना क्रोधित था की वो अंग्रेज और अंग्रेजी से नफरत करने लगा। उसने सरकारी नौकरियों से मुँह फेर लिया। वे गरीबी में दिन बिताने लगे। लाल किले को छोड़कर मुग़ल सम्राट बहादुर शाह जफ़र को भूटान जाना पड़ा और उन्होंने अपने अंतिम दिन वहाँ बिताए। iss उदासीन दौर में कोई भी संगठन अंग्रेजों के खिलाफ नहीं खड़ा हो पा रहा था। सर सय्यद अहमद खान ने मुसलमानो को उठाने की कोशिश की। कई महा पुरुष भारतीय समाज को मोटीवेट करने के लिए और जागृत करने के लिए आगे आए। जागीरदारों ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ा। किसानों ने जबरदस्ती नील की खेती करवाने के खिलाफ आंदोलन छेड़ा। राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा के खिलाफ आंदोलन छेड़ा। महात्मा फूले ने दलितों को शिक्षा देने का अभियान छेड़ा।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने जीव हत्या, जाती वाद, बाल विवाह, स्त्री शोषण के मुद्दे उठाए और आर्य समाज की स्थापना की। उन्होंने वेदों का प्रचार किया। उनके बाद स्वामी विवेकानंद ने वेद ज्ञान और योगा को पूरी दुनिआ तक पहुँचाया। उन्होंने रामा कृष्णा मिशन की नीव रखी। बाल गंगा धार तिलक और गोविन्द रानडे ने गर्म और नरम संगठन बनाए। बाल विवाह के खिलाफ क़ानून बनाने पर प्रस्ताव रखा गया। और फिर अपने अधिकारों को मनवाने के लिए इंडियन नेशनल कांग्रेस का संगठन बना और भारत को आजादी का सूरज दिखने लगा। गांधी जी ने उनीस सौ इकीस में कांग्रेस के साथ जुड़कर आजादी की चिंगारी को आग में बदल दिया और गरीबी , स्त्री शोषण , जाती वाद के खिलाफ और पूर्ण स्वराज के अभियान छेड़े।
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