श्रद्धा का ये जाल काट कर, दोस्त के झूठे बोल समझ ले – मात पिता की बात समझ तू , धन का अब तो मोल समझ ले – दिल्ली की इस नगरी में, अब नदिया जैसा बहता हूँ
ग्रीन शहर की कविता लिखकर, सची बात मैं कहता हूँ
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आदत तेरी बुरी नहीं है , बुरी तुम्हारी संगत है – मौसम का बस असर हुआ है, बदली सी जो रंगत है
आंखें खोल के अपनी मैं तो, ग्रीन हार्ट में रहता हूँ – दिल्ली की इस नगरी में, अब नदिया जैसा बहता हूँ
ग्रीन शहर की कविता लिखकर, सची बात मैं कहता हूँ
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रक्षक बनकर तेरी लाइफ का , मात पिता ने तुघ्को पाला – भ्रष्ट बुद्धि को दण्डित करके, उन्होंने हर पल तुघे संभाला
भूल के सब कुछ तू क्यों बोले, यार मैं सब कुछ सहता हूँ – दिल्ली की इस नगरी में, अब नदिया जैसा बहता हूँ
ग्रीन शहर की कविता लिखकर, सची बात मैं कहता हूँ