Student’s Kurukshetra – विद्यार्थी का कुरुक्षेत्र

एक गाँव में एक विधार्थी था और उस विद्यार्थी ने जब देखा की उसके अद्यापक कुछ ऐसे कार्य कर रहे हैं जो उन्हे नहीं करने चाहिए तो वो उन अद्यापक के पास गया. उनके पास जाते ही वो उनसे पूछने वाला ही था की आप जो कर रहे हैं, वो क्यों कर रहे हैं और क्या वो ठीक है ? लेकिन अद्यापक के पास पहुंचते ही वो पूछ नहीं पाया. अद्यापक ने कहा “बेटा तुम मुघसे कुछ पूछना चाहते हो ?”. लेकिन इस सवाल के बाद विद्यार्थी का चेहरा लाल हो गया , उसका मुहं सूख गया और उसके सांस रुकने लगी और वो अपने ऊपर नियंत्रण खोने लगा. ऐसा क्यों हुआ ? क्या वो विद्यार्थी सहज महसूस नहीं कर रहा था या वो सवाल पूछने से डर रहा था ? या वो एक सम्मानित व्यक्ति को ठेस नहीं पहुचना चाहता था. क्या उसका दिल कोमल था ? यह स्थिति हमें महाभारत काल में ले जाती है जहां अर्जुन धर्म युद्ध लड़ रहा है और जब वो धनुष उठाता है तो देखता है की सामने भीष्म पितामह खड़े हैं जिन्होंने उसको गोद में खिलाया है. द्रोणाचार्य और क्रिपाचार्य खड़े हैं जिनका वो सबसे अधिक सम्मान करता है. दुर्योधन खडा है जो उसका बड़ा भाई है. वो सोचता है “मैं क्यों अपने पितामह गुरुओं और भाई पर बाण चला रहा हूँ ? क्यों मैं अनावश्यक उन्हें मार रहा हूँ ? अगर वो सब ही नहीं बचेंगे तो मैं इस राज्य का क्या करूंगा ?”. यहाँ अगर हम देखे तो पाएंगे की विद्यार्थी और अर्जुन की स्थिति एक जैसी हैं. अर्जुन के हाथों से भी धनुष फिसल रहा है और उसका शरीर कांप रहा है. वो असहज महसूस कर रहा है और सोच रहा है की वो युद्ध छोड़कर वन में चला जाए. वहाँ विद्यार्थी सोच रहा है की अद्यापक का सम्मान नष्ट करने की बजाय वो वापिस कक्षा में चला जाए और जो अधर्म हो रहा है उसे यूँ ही देखता रहे. लेकिन तभी भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन जो याद दिलाते हैं की जो सही है और धर्म है वो करो और यूँ अपनी इन्द्रीओं को तृप्त करने की कोशिश मत करो. अर्जुन अपने परिवार के सुख के बारे में सोच रहा है और धर्म के बारे में नहीं. शायद दुर्योंधन भी अर्जुन को यही समझाता की युद्द्ध लड़ना तुम्हारा धर्मं है और तुम युद्द लड़ो. भगवान् उससे बन्धनों से बाहर निलकने के लिए कहते है और उसको समझाते हैं की वो अपनी इन्द्रीओं के सुख के लिए उनकी भक्ति ना करे बल्कि अपनी इन्द्रीओं से उनकी सेवा करे. और उनकी सेवा तभी होगी जब वो अपनी इन्द्रीओं का इस्तेमाल धर्मं युद्द को जीतने के लिए करेगा. उसी तरह स्कूल का वो विद्यार्थी अपने सुख के लिए अधर्म होते हुए देख रहा है और वापस कक्षा में जाने का विचार बना रहा है. जबकि धर्म यह कहता है की अगर अद्यापक का कार्य अगर विद्यालय के विपरीत जा रहा है तो विद्यार्थी को प्रेम पूर्वक यह बात अद्यापक से कहनी चाहिए और “मैं उनका सम्मान करता हूँ” यह सोचकर अधर्म के मार्ग पर नहीं चलना चाहिए. उसका छोटा सा कार्य उसके विधालय की सम्रद्धि का कारण बन सकता है. क्योंकि उसका मन कोमल है इसलिए वो यह बात कहने में झिजक रहा है. लेकिन कोमल मन में इश्वर का वास होता है और यही वजह है की जब विद्यार्थी की इच्छा उसके अन्दर व्याप्त इश्वर की इच्छा से विपरीत होती है, तो उसके मन में डर, शरीर में कम्पन और अपने आप पर नियंत्रण कम होने लगता है. और इस स्थिति में अर्जुन इश्वर की बात सुनता है और इसी तरह विद्यार्थी को भी इश्वर की बात सुननि चाहिए और गहरी सांस लेकर प्रेम पूर्वक अद्यापक से बात करनी चाहिए.

Loading

The Power of Namaskaar


अगर मेरा यह सर किसी के आगे झुकने से हमेशा इनकार करता है और मेरे यह हाथ किसी को नमस्कार करने के लिए नहीं जुडते तो मुघे यह समझ लेना चाहिए की मैं उस गाड़ी की तरह हो गया गया हूँ जिसका कर्म तो चलना है और लिबरेशन या मुक्ति तक पहुँचाना है लेकिन अभी उसमे कुछ खराबी आ गयी है. मुघे यह समझना होगा की अगर मैं किसी को झुककर प्रणाम करता हूँ तो मुझमे निष्ठां की भावना पैदा होती है और यह निष्ठा की भावना, मेरे दिल और दिमाग में सामने खड़े हुए मनुष्य की अच्छाईओं के बारे में सोचने की लिए मजबूर करती है और इस तरह में उस मनुष्य की अछाईओं को ग्रहण कर लेता हूँ और अपने आप को और निखार लेता हूँ. इस तरह मैं अभ्यास करता हुआ इश्वर के गुणों को समझने लगता हूँ और एक सीमा रेखा से अपने आप को बहार निकाल लेता हूँ. और समय के साथ जैसे जैसे मैं इस अभ्यास को और बड़ा देता हूँ तो मैं इश्वर के चरणों के और नजदीक पहुँच जाता हूँ और उनके गुणों को पहन कर आनंदमय महसूस करता हूँ. और अगर मैं उस आनंद को महसूस करता हूँ तो मेरे आसपास के सब प्राणी उस आनंद रस का अनुभव करने लगते हैं और वो भी इस मुक्ति मार्ग पर चलने के लिए उत्सुक हो जाते हैं. और इस तरह वो भी अभ्यास करते हुए निष्ठा भाव से प्रणाम करना सीख जाते हैं.

Loading

Delhi University Special


मिशन ग्रीन दिल्ली ब्लॉग दिल्ली यूनिवर्सिटी के सब छात्रों को ग्रीन स्क्रीन आफ दिल्ली पर लिखने के लिए इनवाईट करता है और उम्मीद करता है के आप सब होनहार छात्र अपने विचारों से दिल्ली की जनता को एक नयी राह दिखा सकेंगे और हमारे इस ब्लॉग के जरिये उन् हज़ारों लोगों की भावनाओं को सही दिशा में ले जाएंगे जो हर दिन इस ब्लॉग से कुछ सीखने के मकसद से आते हैं.  छात्रों के साथ साथ अगर कोल्लेजीस और स्कूल्स के अध्यापक और अद्यापिकाएं भी कुछ महत्वपूर्ण सन्देश दिल्ली की जनता के समक्ष रखना चाहते हैं तो मिशन ग्रीन दिल्ली ब्लॉग उनका तहे दिल से स्वागत करता है.  हम कब तक पत्थर के अंडे बने रहेंगे ? अब समय आ गया है की इस पत्थर के अंडे तो तोड़कर इसके अन्दर जो अनमोल खजाना भरा हुआ है उसको हम बांटना शुरू करें और ज्ञान की एक लहर सी दिल्ली की जनता के दिलो दिमाग पर छोड़ दें. मैं जानता हूँ के हम वो लोग हैं जो हर चीज के अन्दर कमी निकाल कर उससे दूर भागने की कोशिश करते हैं लेकिन अब समय आ गया है की हम बुराइओं को त्यागकर हर चीज़ की  अच्छाइओं को खोजें और मिशन ग्रीन दिल्ली का सपना जो हर दिल्लीवासी का सपना है, पूरा करें. धन्यवाद्.

Loading

What are you looking for ?

    ×
    Connect with Us

      ×
      Subscribe

        ×