हालत यूँ सुधर रही है, क्या होगा ये खबर नहीं

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चला गया वो दौर, जब दूध में पानी मिलाया जाता था
अब तो जहर का मौसम है, बिना इसके कुछ जचता नहीं
जहर छोड़ते डिब्बों में, लोग अब घूम रहे हैं
हालत यूँ सुधर रही है, क्या होगा ये खबर नहीं

जमीन में जहर है, हवा में भी कम नहीं
दिलों में गर हो गया, इसका हमे गम नहीं
फर्क पड़ता नहीं अब हमको, हरा भरा वो शज़र नहीं
हालत यूँ सुधर रही है, क्या होगा ये खबर नहीं

कट रही आज वो माता, जो दूध का सागर थी
पाल रही थी सबको, सुख की वो गागर थी
चबा कर उसको खा रहे जो, मिलती उनको कब्र नहीं
हालत यूँ सुधर रही है, क्या होगा ये खबर नहीं

बयान कर रहा वर्मा तू, कहानी अब उस दौर की
दिल्ली की उस जनता की, जनता के उस शोर की
चीख रही है कलम ये मेरी, उसको भी अब सब्र नहीं
हालत यूँ सुधर रही है, क्या होगा ये खबर नहीं

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दिल्ली को तुम ग्रीन बनाओ, पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ

उड़ता पंछी मुघे बुलाए, जाने क्यों वो अश्क बहाए
जब भी बैठे वो ट्विटर पर, शहर का अपने हाल सुनाए
मिशन ग्रीन की कविता सुनकर, ग्रीनटेक की बीन बजाओ
दिल्ली को तुम ग्रीन बनाओ, पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ

जीवन मिलता शहर को अपने, फूलों की इन कलियों में
व्याधि को अब रुक्सत कर दो, वृक्ष उगाओ गलियों में
सुबह सुबह तुम कविता गाओ, चलो उठो अब दौड़ लगाओ
दिल्ली को तुम ग्रीन बनाओ, पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ

चलता हूँ मैं बंधू अब तो, काम बहुत सा बाकी है
ग्रीनटेक के प्याले में, जाम बहुत सा बाकी है
शहर को अपने स्वछ बनाओ, देश बचाओ देश बचाओ
दिल्ली को तुम ग्रीन बनाओ, पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ

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मैं इंसान हूँ रोबोट नहीं

सिस्टम पर यूँ बैठे बैठे, साँसे मेरी थम रही हैं
छुट्टी वाले दिन भी मेरी, आंते सारी जम रही है
खोट है सारा जीवन का, कोई मुझमे खोट नहीं
चाहूँ मैं भी जीवन को, मैं इंसान हूँ रोबोट नहीं

कहते हैं सब ध्यान रखो तुम, करलो उतना काम रखो तुम
ध्यान आपका में रखूँगा, मेरा भी कुछ ध्यान रखो तुम
पल दो पल का खेल ये सारा, कैसे सबको ना कहूँ में
कर्म ही अपना जीवन सारा, कर्म को अपनी माँ कहूँ मैं
माँ तू मुघको सांस दिला दे, चाहूँ मैं कोई नोट नहीं
चाहूँ मैं भी जीवन को, मैं इंसान हूँ रोबोट नहीं

चलता रहता है जो हर पल , रोबोट कभी भी बंद हो जाता
चिपक रहा जो सिस्टम से , इंसान कभी भी बंद हो जाता
ग्रीन टेक को जो ना जाए , ऐसा कोई वोट नहीं
चाहूँ मैं भी जीवन को, मैं इंसान हूँ रोबोट नहीं

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