Aajaadi Kaa Ab Jashn Manaa Lo

सुनकर बहती नदिया को , संवाद करो किनारों से  – अज्नाबिओं को गले लगाकर, स्वागत करो बहारों से
आजादी का अब जश्न मना लो,  सबको अपना आज बना लो  – कुछ पल अपनी बुद्धि को, आजाद करो विचारों से
_____________________________

पल पल मरती पिंजरे में , चिडिया आज बरी हुई है  – दुनिया के इस नक्शे पर , दिल्ली अपनी हरी हुई है
मुग़ल काल के स्मारक छुकर ,  बात करो मीनारों से  – आजादी का अब जश्न मना लो,  सबको अपना आज बना लो
कुछ पल अपनी बुद्धि को, आजाद करो विचारों से
____________________________________

आज तिरंगा दिल में देखो, कुछ पल खुद के साथ बिताकर – अपना जीवन सफल करो अब, कुछ पल उसपर प्यार जताकर
मुख पर सबके पुष्प खिलाओ, कविता  की फुहारों से  – आजादी का अब जश्न मना लो,  सबको अपना आज बना लो
कुछ पल अपनी बुद्धि को, आजाद करो विचारों से

Please mail at puneet6565@gmail.com for feedback

Loading

बारिश की इन बूंदों को , बाँट रहा हो गिनकर जैसे

 

मौसम का अंदाज है बदला, गर्म हवा को छोड़ के पीछे – टिप टिप पानी उस पर बरसा, पीपल है जो मोड़ के पीछे
देखो काली घटा के पीछे, चमक रहा है दिनकर ऐसे – बारिश की इन बूंदों को , बाँट रहा हो गिनकर जैसे
__________________________________________

बूँद बूँद को मुख से पीती, प्यासी धरती सुखी हुई अब – आसमान को ताक़ रही है, नजर हमारी झुकी हुई अब
वृक्ष के पीले पतों को, तोड़ रहा हो चुनकर जैसे – देखो काली घटा के पीछे, चमक रहा है दिनकर ऐसे
बारिश की इन बूंदों को , बाँट रहा हो गिनकर जैसे
___________________________________________

पूरब पश्चिम हर दिशा में, आज बजी है कैसी सरगम – दिल्ली की इन् सड़कों पर, कोयल कूक रही है हरदम
क़ुदरत के इन फूलों को , जोड़ रहा हो बुनकर जैसे – देखो काली घटा के पीछे, चमक रहा है दिनकर ऐसे
बारिश की इन बूंदों को , बाँट रहा हो गिनकर जैसे

By Puneet Verma – puneet6565@gmail.com

Loading

ग्रीन शहर की कविता लिखकर

श्रद्धा का ये  जाल काट कर, दोस्त के झूठे बोल समझ ले  – मात पिता की बात समझ तू , धन का अब तो मोल समझ ले  – दिल्ली  की  इस नगरी में, अब नदिया जैसा बहता हूँ
ग्रीन शहर की कविता लिखकर, सची बात मैं कहता हूँ

___________________________________________

आदत तेरी बुरी नहीं है , बुरी तुम्हारी संगत है – मौसम का बस असर हुआ है, बदली सी जो  रंगत है
आंखें खोल के अपनी मैं तो, ग्रीन हार्ट में रहता हूँ   – दिल्ली  की  इस नगरी में, अब नदिया जैसा बहता हूँ
ग्रीन शहर की कविता लिखकर, सची बात मैं कहता हूँ

___________________________________________

रक्षक बनकर तेरी लाइफ का , मात पिता ने तुघ्को पाला – भ्रष्ट बुद्धि को दण्डित करके, उन्होंने हर पल तुघे संभाला
भूल के सब कुछ तू क्यों बोले, यार मैं सब कुछ सहता हूँ  – दिल्ली  की  इस नगरी में, अब नदिया जैसा बहता हूँ
ग्रीन शहर की कविता लिखकर, सची बात मैं कहता हूँ

Loading

What are you looking for ?

    ×
    Connect with Us

      ×
      Subscribe

        ×