असली निर्देशक कौन है ?

कोई भी कार्य करते समय मुघे ये पता होना चाहिए की मैं जो कर रहा हूँ वो क्यों कर रहा हूँ. और जब मैंने आत्म चिंतन किया तो पाया की मैं एक छोटे बच्चे की तरह अपने आस पास की चीज़ों को समझने की कोशिश कर रहा हूँ.  उन्हें देख रहा हूँ और उनके होने का कारण जानना चाह रहा हूँ.  और ऐसा करने से मेरे ज्ञान चक्षु खुल रहे हैं और एक लम्बी निद्रा का अंत हो रहा है. ऐसा करते समय मैं देख रहा हूँ की मेरा हर चिंतन एक लक्ष्य पर आकर समाप्त हो जाता है और कई लक्ष्य मेरे सामने होते है. राजसिक गुण में हूँ और ज्ञान की भूख बढती ही जा रही है, तो इतना तो समझ सकता हूँ की मैं खुद को कर्ता मान रहा हूँ. लेकिन ज्ञान के लक्ष्य तक पहुँचने और प्रभुत्व की ये चाहत होते हुए भी मैं अपने ज्ञान रूपी आँखों से देख पा रहा हूँ. मेरे ज्ञान रूपी चक्षु या आंखें मुघे एक फिल्म का सीन दिखा रही हैं जिसमे एक कलाकार अपने रोल में कुछ नया करने की कोशिश कर रहा है. वो सोच रहा है की वही कर्ता है. और वो निर्देशक द्वारा समझाई गयी स्क्रिप्ट से द्वंद कर रहा है.  अगर कलाकार निर्देशक की बात मान कर कर्म करेगा तो वो सही दिशा में जाएगा और ज्ञान के लक्ष्य तक जल्दी पहुच पाएगा. यहाँ मुघे समझना होगा की कर्ता मैं नहीं बल्कि निर्देशक है. अगर मैं कलाकार के भेस में निर्देशक का कार्य करूँगा फील्म फ्लॉप हो जाएगी. और अगर में निर्देशक की बात मान कर कार्य करूँगा तो फिल्म सुपरहिट हो जाएगी और मैं प्रत्यक्ष देख और समझ पाऊंगा की निर्देशक ने जो लिखा था वो सही लिखा था. तो मैं समझ सकता हूँ की भले ही मैं अपने रजस गुन के कारण ज्ञान पर विजय पाना चाहता हूँ लेकिन सत्य ये है की मैं कर्ता नहीं हूँ . असली कर्ता तो तुलसी डास हैं, नारद हैं , चैतन्य महाप्रभु हैं, बुद्ध हैं जिनको हम कभी समझ नहीं पाते और मूर्ख की तरह  अपने आप को विजयी धोषित कर देते हैं.

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Being Green Human:Truth of Green Blog

कभी कभी आप जब भी इस ग्रीन दिल्ली ब्लॉग पर लैंड करते होंगे तो सोचते होंगे की ब्लॉग का नाम तो मिशन ग्रीन दिल्ली है लेकिन इस पर यह कविताएँ और कहानीयां क्यों दिखाई देती हैं. तो इसका कारण है हमारा विश्वाश. हमारा विश्वाश ये कहता है की हम अपने शहर को तब तक ग्रीन नहीं बना सकते जब तक हम अपने दिल को ग्रीन या सम्रध नहीं बनाते. जिस व्यक्ति का का मन और बुद्दी ग्रीन होने लगती है उसी से मिशन ग्रीन की शुरुआत होती है. और मैं ये मानता हूँ की जो व्यक्ति शास्त्रों को जानता है और उनसे सीखने का प्रयास करता है वो ग्रीन होना शुरू हो जाता है. और जब ऐसा व्यक्ति किसी टेकनोलोजी पर काम करता है या आविष्कार करता है तो वो मानवता के विकास के लिए होती है, ना की उसके खिलाफ. मेरी कविताओं और कहानिओं में आपको थोड़ी मस्ती, थोडा बचपना, थोडा प्यार और इश्वर का जिक्र मिलेगा जो हमे इश्वर से जुड़ने और सम्रध या ग्रीन हूमन बनने की राह पर लेके जाता है. मैं उस शहर का सपना देखता हूँ जहां किसी पशु, पक्षी की ह्त्या ना हो, किसी व्यक्ति के अधिकारों ना छीने जाएं, जरुरतमंदो की मदद हो सके, बुजुर्गों की सेवा और सम्मान हो, हर व्यक्ति को रोजगार मिले, हर व्यक्ति के पास समाज सेवा करने के लिए पर्याप्त समय हो, दिल में प्रेम हो . मैं हर पल सोचता हूँ की हम अपनी ऊर्जा को सही दिशां में ले जाएं जिससे समाज का भला हो. हम अपने ज्ञान और विज्ञान को सही दिशा दें जिससे मानवता का भला हो. हम अपने इस शरीर रूपी मंदिर को साफ़ करें, पर्याप्त आराम दें और इसे इश्वर और मानवता की सेवा में लगाएं. हम उन् सभी अविष्कारों का त्याग करें जिससे मानवता शरमशार हो रही है. और उन अविष्कारों और ग्रंथों का अध्यन करें जो हमे आत्म यथार्य और आनंद की दिशा में ले जाता है जिसको मैं ग्रीन हुमन भी कहता हूँ.

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