जब बैकुंठ स्वयं आए
तो बैकुंठ कौन जाए
कोटि कोटि योनियों के
भृमण से कान्हा खींच के लाए
अब बैकुंठ कौन जाए
बृंदा के वन में
कदम्ब के डारन पर
झूला झूलें सब सखियाँ
काल को दूर भगाए
अब बैकुंठ कौन जाए
कालिंदी के कूलन पर
वृषभान के कांधन पर
हलधर हाथ लगाए
अब बैकुंठ कौन जाए
माखन चोर ने चित को लियो चुराए
मोरपंख सर पर क्या धरयो
स्वर्ण चकित चकराए
बन कर भ्रमर बृंदाबन घूमे
गुंजन चहुं ओर मचाए
अब बैकुंठ कौन जाए
चकित चितवन हेरे चहुं दिस
मन हर्षित उलसित दोऊ दृग नीर बहाए
हस्त जोड़ यह विनय सुनो मुरारी
पीड़ हरो भव पार उतारी
तन मन अर्पण करते जाए
अब बैकुंठ कौन जाए