दिल्ली की बारिश

Rain

ये जो फुहार पड़ रही दिल्ली में, जगा रही है उमंग ऐसी ।
नाच रहा हो मोर ऐसेे, बज रहा मृदंग जैसे ।
थाप यन्त्र ये कह रहा, आसमान क्यों बह रहा ।
मचल रहा मन क्यों ऐसे, जीवन जाग रहा जैसे ।

कविता कहती है, मैं आउंगी काम तुम्हारे ।
शहर की हरियाली पर, भेजूंगी पैगाम तुम्हारे ।
बस तुम कलम छोड़ मत देना,
मिशन ग्रीन का रास्ता मोड़ मत देना ।

बारिश के मौसम में किसी ने सुबह सुबह कहा की चाय बनाओ और पकोड़े ले आओ तो ये पंक्तियाँ सूझी ….

मानता हूं आज आसमान नीला हो गया,
लेकिन पकोड़े के चक्कर अगर मैं गीला हो गया ।
क्या करूँगा फिर गर कोल्ड हो गया,
आफिस का schedule गर होल्ड हो गया ।

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वायु रथ पर मेघों का मेला – भूपेश खत्री की कलम से

rainy day

वायु रथ आरूढ़ मेघों का मेला
श्याम वर्णी सारथी जल का रेला
भरी जीवन गागर रस का सागर
कुछ उमड़ उमड़ ढुलक रहीं
कुछ घुमड़ घुमड़ पुलक रहीं
अट्टहास है मर्दन का
व्यक्तित्व पूर्ण है सृजन का
हस्त धार-खड्ग विद्युत दंड
व्यापित घनघोर शब्द प्रचण्ड
हृदय आघात ध्वनि से
चपल दामिनी सर्पिणी दर्पित
प्रचण्ड वेग निर्झरणी से
किंचित फुहार ज्यूं मधु प्रहार
सिंचित खचित बहे धार त्वरित
कुबेर के धन सा गर्भ पूर्ण
इंद्र के जल सा रूप धरूं
करूं वृष्टि-दृष्टि फुहार बनूं
चले वज्र बाण तरंगित लय
झंकृत तार संगीत मय
घ्राण-रंध्र परिपूरित सुवास
वसन हरितमय धरा मिठास
लयबद्ध बजे सुरम्य ताल
दादुर संगीत हृदय धमाल
आकंठ पूर्ण द्रवित हाल
मेघ अस्तित्व विलयित धरा
जीवन संचार तृषित हृदया
खंजन नयन मेघ परिपूरित
वज्र तड़ित विहंगम चित्रित
घनघोर स्वर आवेशित
जलबिंदु नृत्य विलासित

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ज्ञानी ना बन जाऊं मैं

religions

ज्ञानी ना बन जाऊं मैं, टूट टूट ना जाऊं मैं ।
साथ सभी का मिल जाए तो, परमानंद ही पाऊं मैं ।

खोजी मन हो, खोजी बुद्धि । जीवन की मैं, कर लूं शुद्धि ।
नई सोच के साथ साथ अब, सबको अब अपनाऊ मैं ।
साथ सभी का मिल जाए तो, परमानंद ही पाऊं मैं ।

टूट टूट कर माला के, मोती क्यों यूँ बिखर रहे ।
ज्ञानी जबसे शहर हुआ जो, लोग हमारे बिखर रहे ।
मिशन ग्रीन की माला बनकर, मोती फूल बनाऊं मैं ।
साथ सभी का मिल जाए तो, परमानंद ही पाऊं मैं ।

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