मन की स्थिरता शुरू हो गयी

man

हंसी तुम्हारी कहाँ खो गयी, आँखें भी अब गुमसुम हो गयी
दुनिआ तुमको झूठ लग रही,  कैसी दुविधा आज हो गयी
उड़ता पंछी कहाँ खो गया, मुक्त तुम्हारा हृदय हो गया
बहती नदिया झील बन गयी,मन की स्थिरता शुरू हो गयी

योगी जीवन योगी काया, बाकी सब कुछ सिर्फ है माया
कलियाँ सारी आज सो गयी , जो थी होनी आज हो गयी
चिंतित बुद्धि शांत हो गयी , मन का सूरज उदय हो गया
बहती नदिया झील बन गयी,मन की स्थिरता शुरू हो गयी

सुख दुःख का ये खेल सताए , जीत हार का जाल बिछाये
मिशन ग्रीन का जादू ऐसा , हमको तो ब्रह्माण्ड बुलाए
शांत आपका हृदय हो गया, कविता मेरी सफल हो गयी
बहती नदिया झील बन गयी,मन की स्थिरता शुरू हो गयी

– पुनीत वर्मा की कलम से

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दिल्ली को तुम ग्रीन बनाओ, पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ

उड़ता पंछी मुघे बुलाए, जाने क्यों वो अश्क बहाए
जब भी बैठे वो ट्विटर पर, शहर का अपने हाल सुनाए
मिशन ग्रीन की कविता सुनकर, ग्रीनटेक की बीन बजाओ
दिल्ली को तुम ग्रीन बनाओ, पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ

जीवन मिलता शहर को अपने, फूलों की इन कलियों में
व्याधि को अब रुक्सत कर दो, वृक्ष उगाओ गलियों में
सुबह सुबह तुम कविता गाओ, चलो उठो अब दौड़ लगाओ
दिल्ली को तुम ग्रीन बनाओ, पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ

चलता हूँ मैं बंधू अब तो, काम बहुत सा बाकी है
ग्रीनटेक के प्याले में, जाम बहुत सा बाकी है
शहर को अपने स्वछ बनाओ, देश बचाओ देश बचाओ
दिल्ली को तुम ग्रीन बनाओ, पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ

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मैं इंसान हूँ रोबोट नहीं

सिस्टम पर यूँ बैठे बैठे, साँसे मेरी थम रही हैं
छुट्टी वाले दिन भी मेरी, आंते सारी जम रही है
खोट है सारा जीवन का, कोई मुझमे खोट नहीं
चाहूँ मैं भी जीवन को, मैं इंसान हूँ रोबोट नहीं

कहते हैं सब ध्यान रखो तुम, करलो उतना काम रखो तुम
ध्यान आपका में रखूँगा, मेरा भी कुछ ध्यान रखो तुम
पल दो पल का खेल ये सारा, कैसे सबको ना कहूँ में
कर्म ही अपना जीवन सारा, कर्म को अपनी माँ कहूँ मैं
माँ तू मुघको सांस दिला दे, चाहूँ मैं कोई नोट नहीं
चाहूँ मैं भी जीवन को, मैं इंसान हूँ रोबोट नहीं

चलता रहता है जो हर पल , रोबोट कभी भी बंद हो जाता
चिपक रहा जो सिस्टम से , इंसान कभी भी बंद हो जाता
ग्रीन टेक को जो ना जाए , ऐसा कोई वोट नहीं
चाहूँ मैं भी जीवन को, मैं इंसान हूँ रोबोट नहीं

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