होली पर यूँ भांग चढ़ाकर, मस्ती में सब पागल हो गए

बच्चे बूढ़े नाच रहे हैं, हम तो गुंजियां बाँट रहे हैं
होली के इस अवसर पर, बाबा हमको डांट रहे हैं
आसमान में रंगों के, घने घने से बादल हो गए
होली पर यूँ भांग चढ़ाकर, मस्ती में सब पागल हो गए

दिल्ली की तुम सड़कें देखो, प्रीत विहार के लड़के देखो
सड़कें सारी आज धुल गयी, भांग हमारे मुह में घुल गयी
आज गुब्बारे सर पर फूटे, शहर में हमने सब दिल लूटे
आसमान में रंगों के, घने घने से बादल हो गए
होली पर यूँ भांग चढ़ाकर, मस्ती में सब पागल हो गए

मिशन ग्रीन की कविता पड़कर, ग्रीन ग्रीन ये होली हो गयी
कृष्ण नगर की गलियों में जब, कविताओं की झोली खो गयी
हम भी पागल आज हो गए, तुम भी पागल आज हो गए
होली पर यूँ भांग चढ़ाकर, मस्ती में सब पागल हो गए

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दिल्ली में कुछ बात है

मेट्रो की इस खिड़की से, अक्षर धाम को देख रहा हूँ
स्वामी जी के चरणों में, अपना मस्तक टेक रहा हूँ
यमुना बैंक से दिख रही अब, चम चम करती रात है
कहता है अब अपना ये मन, दिल्ली में कुछ बात है

कश्मीरी गेट की सड़कों पर, फूटपाथ पर लगा बसेरा
आम आदमी तड़प रहा है, भड़क रहा है शहर ये मेरा
साथ हमारे मिशन ग्रीन है, ग्रीन पीस का साथ है
कहता है अब अपना ये मन, दिल्ली में कुछ बात है

नदियों और इन् नालों में, आज भी बसते लोग हमारे
हाई टेक इस दिल्ली में, आज भी बसते रोग वो सारे
शहर की इस तररकी में, जाने किसका हाथ है
कहता है अब अपना ये मन, दिल्ली में कुछ बात है

पुनीत वर्मा की कलम से

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माँ होती तो क्या होता

रहता हूँ मैं , अपनों में बेगाना बनकर
रोता हूँ मैं, सपनो में रोजाना जमकर
जलती इस धूप में, छाँव होती तो क्या होता
नकली इस भेस में, जीवन की इस रेस में
इस बेगाने देश में, माँ होती तो क्या होता

प्यासा हूँ मैं, नदियों के इस देश में
डूब रहा हूँ आज, मन के इस द्वेष में
यहां मीठे पानी की, बां होती तो क्या होता
नकली इस भेस में, जीवन की इस रेस में
इस बेगाने देश में, माँ होती तो क्या होता

खुली इस पवन में, मन ये घुटता है
झूठी इस चाह मैं, दिन ये लूटता है
गाँव की उस झील की, नाव होती तो क्या होता
नकली इस भेस में, जीवन की इस रेस में
इस बेगाने देश में, माँ होती तो क्या होता

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