दिल्ली में कुछ बात है

मेट्रो की इस खिड़की से, अक्षर धाम को देख रहा हूँ
स्वामी जी के चरणों में, अपना मस्तक टेक रहा हूँ
यमुना बैंक से दिख रही अब, चम चम करती रात है
कहता है अब अपना ये मन, दिल्ली में कुछ बात है

कश्मीरी गेट की सड़कों पर, फूटपाथ पर लगा बसेरा
आम आदमी तड़प रहा है, भड़क रहा है शहर ये मेरा
साथ हमारे मिशन ग्रीन है, ग्रीन पीस का साथ है
कहता है अब अपना ये मन, दिल्ली में कुछ बात है

नदियों और इन् नालों में, आज भी बसते लोग हमारे
हाई टेक इस दिल्ली में, आज भी बसते रोग वो सारे
शहर की इस तररकी में, जाने किसका हाथ है
कहता है अब अपना ये मन, दिल्ली में कुछ बात है

पुनीत वर्मा की कलम से

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