स्वप्न यही दिखता है हरपल, धीमी हो ये बढ़ती हलचल

birds greenry

स्वप्न यही दिखता है हरपल, धीमी हो ये बढ़ती हलचल ।
सुन पाऊं उस चिड़िया को, पुकार रही जो मुझको पल पल ।
मिशन ग्रीन को बुन पाऊं, अपने दिल को सुन पाऊं ।
रोशन कर दूं शहर को अपने, हरियाली की लो से इस पल ।
सुन पाऊं उस चिड़िया को, पुकार रही

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दीप उगाएं आंखों में

bhupesh ji

मलिन कलुष अंतस अंधियारा
देहरी पर था दीप उजारा

हृदय वेदन मर्म चीत्कार
क्रन्दन करती किसे पुकार

मल का विचलित क्षुद्र विकार
तेजोमय द्वि-दीप संहार

नेत्रों से बह निकली धार
वीणा वन्दन झंकृत सितार

अंगुरि पोर देह बंसी बरसे अमृत
बजती लय सुध बुध थी विस्मृत

चौक पुराओ द्वार लिपाओ
घूरे के भी दिन फिर जाओ

जलते जाओ नयन भर आस
उषा आगमन प्रतीक्षा श्वास

सौंप लपट तुम देना रवि को
अंजुरी भर परंपरा की धरोहर

बुझते बुझते दे गया संदेश
भभका निर्वाण पूर्व प्रवेश

जितनी ज्वाला बच रहती थी
सब सँग समेट तुम्हें है सौंपी

जग भर उजियारा फैलाना
कोई दीप पुनः उगाना

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