आज मस्तिस्क में एक सवाल उठा है. हम अपनी डेली लाइफ में कैसे पता लगाएं की क्या सही है और क्या गलत.तो मुघे जवाब मिलता है की दुनिया में कोई भी चीज़ सही या गलत नहीं है. बल्कि मैं उसे कैसे स्वीकार करता हूँ वो भाव सही और गलत होता है.यानि अगर मैं किसी गलत चीज़ को सही भाव से स्वीकार करता हूँ वो तो सही है. और अगर किसी सही व्यक्ति को गलत भाव से स्वीकार करता हूँ वो गलत है. मेरा संचालन सही या गलत होता है. जैसे की अगर मैं किसी ग्रन्थ को पढ़ना चाहता हूँ और इस कारण उसको खोलता हूँ. फिर उसमे लिखे शब्दों को पड़ता हूँ . और फिर शब्दों के पीछे के भावों को गलत तरीके से ग्रहण करता हूँ और समझता हूँ और बांटता हूँ. तो यहाँ मैं गलत हो जाता हूँ. सामने खड़ा व्यक्ति किसी कमजोर को नुक्सान पहुंचा रहा है और मैं राम की तरह सुग्रीव की मदद करता हूँ, तो मेरा सञ्चालन सही हो जाता है. अगर मैं इसे अनदेखा कर देता हूँ तो ये गलत हो जाता है. दो तरह के लोग है: जो सोये हुए हैं और वो जो जागे हुए हैं.पराशूट और दिमाग जब तक खुले हैं तब तक काम करते हैं. हमारा हर वो कार्य जो हमारी बंद आँखें खोल देता है वो सही है. और हमारा हर वो कार्य जो हमारे मन और बुद्धि रुपी चक्षुओं को बंद कर देता है, वो गलत है. अगर मेरा वर्तमान कार्य मेरे ज्ञान चक्षुओं को खोल रहा है, तो मेरा आज सही होगा. अगर मेरा आज या वर्तमान सही है तो वो सही भूतकाल में बदल जाएगा. और अगर भूतकाल और वर्तमान सही हैं तो भविष्य का निर्माण सही होगा.