ये जो फुहार पड़ रही दिल्ली में, जगा रही है उमंग ऐसी ।
नाच रहा हो मोर ऐसेे, बज रहा मृदंग जैसे ।
थाप यन्त्र ये कह रहा, आसमान क्यों बह रहा ।
मचल रहा मन क्यों ऐसे, जीवन जाग रहा जैसे ।
कविता कहती है, मैं आउंगी काम तुम्हारे ।
शहर की हरियाली पर, भेजूंगी पैगाम तुम्हारे ।
बस तुम कलम छोड़ मत देना,
मिशन ग्रीन का रास्ता मोड़ मत देना ।
बारिश के मौसम में किसी ने सुबह सुबह कहा की चाय बनाओ और पकोड़े ले आओ तो ये पंक्तियाँ सूझी ….
मानता हूं आज आसमान नीला हो गया,
लेकिन पकोड़े के चक्कर अगर मैं गीला हो गया ।
क्या करूँगा फिर गर कोल्ड हो गया,
आफिस का schedule गर होल्ड हो गया ।
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