जून की गर्मी से तरसती दिल्ली आज देवताओं के राजा इंद्र से निवेदन कर रही है।
“अगर इन्द्र तुम हो, तो शीतल कर दो । सूर्य को बोल कर, कुछ हल कर दो । रोक दो ब्रह्मांड को कुछ पल, कांप रहा गर्मी से समतल । घटा को बोलकर, जल देव को प्रबल कर दो । अगर इन्द्र तुम हो, तो शीतल कर दो ? ”
अब प्राकर्तिक वृक्ष लगाने से जरुरी हो गया है ग्रीन टेक का वृक्ष लगाना जो मन और बुद्धि में लगाया जाता है।
“एक दिव्य वृक्ष है, जो दिव्य बीज गिराता है । वो बीज अद्श्य रहकर भी, इक्क वृक्ष अन्य लगाता है । बुद्धि को वो शीतल करता, फिर मन तक वो बढ़ जाता है । इक दिव्य वृक्ष है, जो दिव्य बीज गिराता है । ”
आज ऐसा लग रहा है मानो वृक्ष भी हमसे रूठ गया है इंसान तो दूर की बात है।
“क्या बदलाव के लिए मैं अकेला ही काफी हूँ ? ऐ शीतल वृक्ष, क्या तू भी कुछ नही करेगा । एक एक बीज के सहारे, क्या तू भी नही बढेगा । गर तू भी रूठ गया हो तो, मांग रहा अब माफी हूं । क्या बदलाव के लिए, मैं अकेला ही काफी हूँ ? “