गिरीश शर्मा कि कलम से

बच्चों को मिले ममता , बूढ़ों को हासिल हो प्यार
यही सोच कर एक दिन खुदा ने , इन्सान को किया तैयार।
माता को दिल मिला कोमल , और पिता बने बलवान
सद्बुद्धि ,सदमार्ग प्रशस्थ हो , यह बोल गये भगवान।
प्रेम भाव हो जनमानस में , कभी नए ना उपजै बैर
कभी कमी न हो अन्न वस्त्र की , तो धनरचना कर गये कुबेर।

पर अब न ममता माँ के आँचल , न पिता हृदय में प्यार
धन से ही है जीवनसाथी , धन से ही है रिश्तेदार।
धन की खातिर जीता और धन की खातिर मरा इन्सान
धन आते ही सोच रहा , मैंने ही रच दिया भगवान।

मैंने मन्दिर बना दिया है , मैंने मुकुट दिया है दान
सोने की तौली है मूरत , तो अब मेरा ही है भगवान
जिस नीयत से आया था , वो पीछे छोड़ गया इन्सान
धन आते ही सोच रहा , मैंने ही रच दिया भगवान।

गिरीश चन्द्र शर्मा ”प्रवासी ”

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अमरीकन हैकर भारत में क्यों ?

एन एस ए के इंफो लीक करने के तीन साल पहले  स्नोडेन जापान से दिल्ली आया था और यहाँ पर Koenig Solutions मोती नगर से उसने EC-Council Certified Security Analyst (ECSA) का ४ दिन का और जावा का कोर्स किया।  वो पहले से ही एक certified hacker था। वो कोएनिग में ट्रैनिंग लेने के दौरान ZeuS, Fragus, and SpyEye crimeware किट्स के बारे में भी पूछा  करता था।   जापान में वो dell के लिए काम kar rahaa था।

तीन साल पहले स्नोडेन दिल्ली आया था और यु एस एम्बेसी में टेक्निकल एक्सपर्ट के रोल पे काम भी किया था और फिर अमरीका चला गया था।   आखिर क्या करने आया था स्नोडेन भारत में  ?

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गूगल और याहू एकाउंट्स कि सुरक्षा

आखिर क्या चल रहा है अमरीका में। आखिर कौन है ये स्नोडेन। क्या हमारा गूगल और याहू का डाटा सुरक्षित है ? क्या हमारे बैंक एकाउंट्स कि जानकारी सुरक्षित है ?

स्नोडेन जो कि “सी आई ऐ” और “एन एस ऐ” में काम करता था क्या कह रहा है ? वो किस यन्त्र कि बात कर रहा है जो “एन एस ए” खुफया जासूसी करने के लिए इस्तेमाल कर रहा है।

कहा जा रहा है कि गूगल और याहू के डाटा सेंटर्स की जासूसी कि जा रही है। और ये जासूसी “एन एस ए” के द्वारा की जा रही है। क़ानूनी इंटरनेट निगरानी प्रोग्राम “प्रिज्म” के अंडर ये काम चल रहा है। और मस्कुलर इंटरनेट निगरानी प्रोग्राम के अंडर भी ये काम चल रहा है। और इस काम में “यु के” कि एक टॉप इंटेलिजेंस और सिक्यूरिटी कंपनी “जी सी एच क्यू” कि मदद ली जा रही है।

प्रिज्म और मस्कुलर जैसे और जासूसी प्रोग्राम्स भी 2013 मध्य में सामने आए थे। फॉरेन नेशनल्स के डाटा के रिसर्च के लिए एक कंप्यूटर सिस्टम “एन एस ए” ने बनाया जिसका नाम “की स्कोर” था। फाइबर ऑप्टिक केबल्स जिनसे इंटरनेट का बैकबोन तैयार किया जाता है , उनको लीक करने का सिस्टम “टेम्पोरा” बनाया गया, जिससे इंटरनेट उजेर्स का डेटा लीक किया जा सकता है।

हम उम्मीद करते हैं अमरीकन इंटरनेट कम्पनियां अपने उजेर्स कि प्राइवेसी का ध्यान रखेंगी। धन्यवाद

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